👤10-04-2022-
उन्नाव।250 लाख हेक्टेयर मीटर भूगर्भ जल हर साल जमीनी स्रोतों से निकाल कर भारत दुनिया में नंबर वन है। वहीं इस भूजल दोहन का लगभग 20 फीसदी सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही निकाला जा रहा है। पानी का गिरता स्तर और उसकी बर्बादी को रोक पाने में यूपी का सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल हो चुका है। कानूनी व्यवस्थाएं भी ध्वस्त हो चुकी हैं। नतीजतन शहर से गांव तक भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन बेरोकटोक जारी है। बीते दो दशकों में भूजल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र व राज्य स्तर पर जो भी प्रयास किए गए, वह फिलहाल हाशिए पर ही हैं।
कृषि के साथ-साथ पेयजल, उद्योग, निर्माण कार्य व व्यवसायिक क्षेत्रों की बढ़ती बेहिसाब मांग से जमीनी जल भंडारों का दोहन भी बेलगाम हो चुका है। साथ ही पानी निकालने की नई प्रौद्योगिकियों ने इसमें आग में घी का काम किया है। हकीकत यह है कि कृषि से लेकर उद्योगों, व्यावसायिक व समस्त निर्माण कार्यों में भूजल को मुफ्त का संसाधन मानकर चौतरफा दोहन हो रहा है। वैज्ञानिकों की माने तो भूजल के अंधाधुंध दोहन से भूजल का स्तर जिस गहराई पर पहुंच गया है, वहां से उसकी वापसी तकरीबन असंभव है। भले ही हम क्यों न अरबों खर्च करके भूजल संरक्षण के कितने भी प्रयास क्यों न कर लें। शायद यही कारण है कि दुनिया में भूजल दोहन के पैमाने पर हम नंबर एक पर हैं। वहीं उत्तर प्रदेश भी हर साल करीब 46 लाख हेक्टेयर मीटर भूजल का दोहन कर पूरे देश में अव्वल बना हुआ है।
किसी विभाग के पास नहीं लेखा-जोखा
भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक गैर कानूनी ढंग से किए जा रहे भूजल दोहन का वास्तविक आंकड़ा चौंकाने वाला हैं। विडंबना है कि शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों, उद्योगों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में सबमर्सिबल बोरिंग व निजी नलकूपों द्वारा बेरोकटोक किए जाने वाले भूजल दोहन का लेखा-जोखा सरकार के किसी विभाग के पास नहीं है। एनजीटी में भी यह मामला कई बार उठ चुका है। बावजूद इसके दोहन के असली तस्वीर की जानकारी जिम्मेदार महकमों को नहीं है।
बढ़ते जा रहे हैं संकटग्रस्त क्षेत्र
भूगर्भ जल आंकलन के अनुसार 2013 में जहां देश में कुल 1968 विकासखंड अतिदोहित, क्रिटिकल व सेमी क्रिटिकल श्रेणी में थे, उनकी संख्या 2017 के आकलन में बढक़र 2471 हो गई है । जबकि उत्तर प्रदेश में 2013 में ऐसे विकास खंडों की संख्या कुल 217 थी, जो 2017 में बढक़र 290 हो गई है। साफ है कि अंधाधुंध दोहन से संकटग्रस्त विकास खंडों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बढ़ते भूजल दोहन का ही परिणाम है कि प्रदेश के 822 विकास खंडों में से 70 फीसद में भूजल स्तर में लगातार गिरावट हो रही है। कई शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में तो एक से दो मीटर कि प्रतिवर्ष चिंताजनक गिरावट हो रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 10 शहरों का आंकलन किया गया, जिसमें लखनऊ ,कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी सहित नौ शहर अति दोहित पाए गए, जबकि आगरा शहर क्रिटिकल श्रेणी में सूचीबद्ध है।
कृषि क्षेत्र में बेहिसाब दोहन
कहने को उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादकता में देश में अपना प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं। परंतु इसका खामियाजा भूजल स्रोतों को उठाना पड़ रहा है। देश में हो रहे कुल भूजल दोहन का 16 प्रतिशत हिस्सा यानी 41 लाख हेक्टेयर मीटर भूगर्भ जल सिंचाई के लिए हर साल प्रदेश में निकाला जा रहा है और लगातार बढ़ते सिंचाई नलकूपों के साथ इसमें बढ़ोतरी हो रही है। भयावह स्थिति यह है कि वर्षा जल से हर साल प्राकृतिक रूप से भूगर्भ जल भंडारों में 39 लाख हेक्टेयर मीटर ही भूजल भंडारों में रिचार्ज हो पा रहा है।
तालाबों को बेचने वाले भू माफियाओं पर क्या चलेगा, बाबा का बुलडोजर..?
जल संचय को लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर प्रदेश के मुखिया बाबा योगी आदित्यनाथ जी सदैव सजग रहते हैं। पिछली भाजपा सरकार में भी योगी सरकार ने मई 2017 में शासनादेश जारी करते हुए भू माफियाओं के कब्जे से तालाबों को मुक्त कराने का फरमान जारी किया था। जिस पर थोड़े दिन तो जनपदीय अधिकारियों ने काम किया। किंतु बाद में उस आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब भाजपा के दोबारा सरकार योगी जी के नेतृत्व में पुनः बन गई है। योगी बाबा की सरकार बुलडोजर बाबा के नाम से भी इस बार चुनावी दौर में खूब चर्चा में रही है।
जनपद उन्नाव के ज्यादातर तालाबों को भू माफियाओं ने पाट कर बराबर कर दिया है। जहां जहां भी तालाब थे वहां पर अब शानदार इमारतें बन कर खड़ी हो गई है। तालाबों के समतलीकरण हो जाने से भूगर्भ में पानी की बड़ी समस्या आम जनमानस के सामने आ खड़ी हुई है। आज से दो दशक पहले जनपद में 12 से 20 फुट पर पानी आसानी से मिल जाता था। आज स्थिति इतनी भयावह है कि 80 फुट पर भी पानी नहीं मिल रहा है। अगर आपको पानी चाहिए तो 120 फुट से बाद ही आपको पानी मिलने की संभावना है। कारण बिल्कुल साफ है जनपद में हजारों की संख्या में तालाब हुआ करते थे। जो आज की तारीख में खोजने पर भी आपको नहीं मिलेंगे। तालाबों की संख्या नगण्य की स्थिति में आ चुकी है। तालाबों के खत्म हो जाने से आम दैनिक जगजीवन के साथ-साथ पशु पक्षियों और मवेशियों की दैनिक दिनचर्या पर भी बड़ा असर पड़ा है। आज बड़ी संख्या में मवेशी इधर उधर भटकने को मजबूर है। इसकी बड़ी वजह तालाबों का खत्म होना भी हो सकता है। बड़े स्तर पर जलस्तर का गिरना तो निश्चित तौर पर तालाबों के ना होने की वजह ही है।
भू माफियाओं की जल्द ही आने वाली है सामत
प्रदेश में दोबारा योगी सरकार बनने के बाद भूमाफियाओं के ऊपर बाबा का बुलडोजर जल्दी चलने वाला है। जिसको लेकर उत्तर प्रदेश में एक बार फिर भू माफियाओं पर कार्यवाही करने की तैयारी में शासन जुटा है। शासन के सूत्रों की मानें तो इस बार तहसील स्तर पर भी भू माफियाओं की तरफ बाबा योगी जी महराज की नजर टेढ़ी हो सकती है। अगर ऐसा हुवा तो जनपद में अवैध कब्जे करे बैठे भू माफियाओं की जल्द ही सामत आने वाली है। भू माफियाओं पर मुकदमा दर्ज कर सरकारी जमीन व तालाबों पर बने अवैध कब्जे को मुक्त कराया जाएगा। साथ ही भू माफियाओं के चंगुल से सरकारी जमीनों को छुड़ाया जाएगा।
पशु पक्षियों आदि को मिलती है राहत
आम जनमानस के साथ पशु पक्षियों को भी मिलती थी राहत
तालाबों से आम जनमानस को ही राहत नहीं मिलती थी। पशु पक्षियों को भी बड़ी राहत मिली थी। बरसात के सीजन में तालाबों में पानी भर जाता था। जो पूरे वर्ष तालाब में भरा रहता था। हां बहुत अधिक गर्मी पड़ने पर कुछ तालाबों का पानी सूख जाता था। नहीं तो ज्यादातर तालाबों का पानी पूरे वर्ष भरा रहता था। हां उसकी मात्रा अवश्य कम हो जाती थी। तालाबों में पानी रहने से पशु पक्षियों को पानी की कमी नहीं होती थी। बेसहारा पशु पक्षी आसानी से तालाब का पानी सेवन कर अपनी प्यास बुझाने का काम करते थे। साथ ही तालाब के अगल-बगल नमी होने के चलते हरे घास का भी बंदोबस्त सदैव हमेशा रहता था। जिसका सेवन भी हमारे बेजुबान मवेशी करते थे।
तालाबों को लेकर हाईकोर्ट के भी कई आ चुके हैं निर्देश
तालाबों के समाप्त होने की गम्भीर समस्या के चलते 25 जुलाई 2001 को पारित हुए आदेश में कोर्ट ने कहा कि जंगल, तालाब, पोखर, पठार तथा पहाड आदि को समाज के लिए बहुमूल्य मानते हुए इनके अनुरक्षण को पर्यावरणीय संतुलन हेतु जरूरी बताया है। निर्देश है कि तालाबों को ध्यान देकर तालाब के रूप में ही बनाये रखना चाहिए। उनका विकास एवम् सुन्दरीकरण किया जाना चाहिए। जिससे जनता उसका उपयोग कर सके। कोर्ट का भी आदेश है कि तालाबों के समतलीकरण के परिणामस्वरूप किए गए आवासीय पट्टों को निरस्त किए जाए।
तालाबों को कराया जाएगा कब्जा मुक्त - जिलाधिकारी
भू माफियाओं के द्वारा तालाबों को पाटकर बेचने के बाबत जिलाधिकारी रविंद्र कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि बिल्कुल ऐसे भू माफियाओं को माफ नहीं किया जाएगा जिन्होंने तालाबों पर कब्जा कर बेच डाला है। जनपद के तालाबों को चिन्हित करते हुए भू माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी अपर जिलाधिकारी नरेंद्र सिंह को नोडल अधिकारी बनाया गया है। जनपद में जो भी तालाबों का अस्तित्व खत्म हुआ है उसका चिंहाकन कर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।
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