अयोध्या: राम मंदिर का यह इतिहास नहीं जानते होंगे आप, ऐसे हुई थी मरम्मत By tanveer ahmad2019-09-13

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13-09-2019-रामजन्मभूमि के विवादित स्थल पर  बैरागी साधुओं की ओर से किए गए तोड़फोड़ के कारण ब्रिटिश प्रशासन ने उनसे जुर्माना वसूल किया था। इसी जुर्माने की धनराशि से विवादित स्थल की मरम्मत कराई गई। यह घटना 27 मार्च 1934 की है, जब बकरीद पर शहर में कुर्बानी की खबर फैली। इसी के चलते साम्प्रदायिक तनाव बढ़ गया। इसी घटना को लेकर आक्रोशित साधु विवादित स्थल पर पहुंचे और वहां तोड़फोड़ की। इस घटना के बाद वहां फोर्स तैनात कर दी गई और नमाज पर भी पाबंदी लगा दी गई। अयोध्या री विजिटेड एवं बियांड एड्यूड इवीडेंस पुस्तकों के लेखक, बिहार धर्मादा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल का कहना है कि ब्रिटिश प्रशासन ने नुकसान की भरपाई के लिए विवादित स्थल की मरम्मत कराई थी। इससे पहले क्षतिग्रस्त का आगणन तैयार कराया गया जो कि करीब 85 हजार था लेकिन इसके सापेक्ष ब्रिटिश प्रशासन ने सात हजार 329 रुपए के नुकसान की भरपाई की संस्तुति दी। बताया गया कि यह धनराशि आरोपित बैरागियों से जुर्माने के रूप में वसूल की गई थी। इससे पहले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने 12 मई 1934 को दिए आदेश में मुस्लिम पक्ष को सोमवार तदनुसार 14 मई को विवादित स्थल की साफ सफाई का आदेश दिया। इसके बाद नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई। बताया जाता है कि ब्रिटिश प्रशासन ने जुर्माना वसूलने के बाद निर्माण का ठेका तत्कालीन ठेकेदार तहव्वुर खान को दिया था। इस ठेकेदार ने निर्माण कार्य पूरा कराने के बाद 25 फरवरी 1935 को प्रस्तुत बिल के साथ दिए आवेदन में लिखा कि डिप्टी कमिश्नर के आदेश के क्रम में तहसीलदार नजूल ने विवादित परिसर के पेड़ों व झाड़ियां उसे इस शर्त के साथ सौंपी थी कि जब निर्माण कार्य का भुगतान किया जाएगा तब सम्बन्धित अचल सम्पत्ति की धनराशि उसके बिल से काट ली जाएगी। 
वृक्षों की धनराशि काटकर किया था ठेकेदार को भुगतानठेकेदार ने अपने आवेदन में बिल प्रस्तुत करने में हुए विलंब का कारण दर्शाते हुए लिखा कि-विवादित स्थल के गुम्बद पर लगाया जाने वाला कलश बनारस में तैयार हो रहा है लेकिन अभी वह मिला नहीं है। इसके अलावा \'अल्लाह\' उत्कीर्ण पत्थर भी अभी तैयार नहीं हो सका है। फिर भी आपके आदेशानुसार तत्काल बिल प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है कि एक सप्ताह में कलश व पत्थर दोनों तैयार हो जाएगा। इसके बाद ब्रिटिश प्रशासन ने ठेकेदार के बिल का भुगतान 30 अप्रैल 1936 को किया। बताया गया कि ठेकेदार को पेड़ों से सम्बन्धित धनराशि की कटौती कर सात हजार 329 रुपए के बिल के सापेक्ष छह हजार 825 रुपए 12 पैसे का भुगतान किया गया।  

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