फरार और घोषित अपराधियों को कतई न दें अग्रिम जमानत : हाईकोर्ट By tanveer ahmad2019-10-16
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16-10-2019-इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अग्रिम जमानत के विषय पर एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि फरार और घोषित अपराधियों के अग्रिम जमानत प्रार्थना पत्रों को मंजूर नहीं किया जाना चाहिए।पिछले वर्ष फैजाबाद रोड पर स्थित होटल ग्रैंड ओरियन की तीसरी मंजिल से गिरकर एक बच्चे की मौत हो गई थी। इस मामले के आरोपी को सत्र न्यायालय, लखनऊ द्वारा अग्रिम जमानत दे दी गई थी, जिसे हाईकोर्ट के समक्ष शिकायतकर्ता ने चुनौती दी थी। शिकायतकर्ता के याचिका पर न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए सत्र न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया। क्या था मामला
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल सदस्यीय पीठ ने अंकुर मिश्रा की याचिका पर दिया। याची का कहना था कि 21 दिसम्बर 2018 को वह पत्नी और बच्चों के साथ होटल ग्रैंड ओरियन में एक पारिवारिक समारोह में भाग लेने गए थे। समारोह का आयोजन तीसरी मंजिल पर किया गया था। जहां तीसरी मंजिल की टूटी हुई रेलिंग से गिरकर उनके 11 वर्षीय बच्चे की मृत्यु हो गई। इस मामले में उन्होंने होटल मालिक व प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर लिखाई। बाद में पुलिस द्वारा अपेक्षित कार्रवाई न किये जाने पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ के समक्ष प्रार्थना पत्र भी दिया। न्यायालय ने पाया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये गए गैर जमानतीय वारंट, फरारी की उद्घोषणा व कुर्की आदेश के साथ-साथ पुलिस उच्चाधिकारियों को लिखे गए कई पत्रों के बावजूद मामले के आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। अभियुक्त के फरार होने के बावजूद 9 अगस्त 2019 को सत्र न्यायालय द्वारा उसकी अग्रिम जमानत अर्जी को मंजूर कर लिया गया।न्यायालय का आदेश
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों को उद्धत करते हुए कहा कि फरार और घोषित अपराधियों के अग्रिम जमानत प्रार्थना पत्रों को नहीं मंजूर किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में आरोपी के विरुद्ध 10 जनवरी 2019 को ही न सिर्फ गैर जमानतीय वारंट जारी किया गया था बल्कि उसके खिलाफ फरारी की उद्घोषणा व कुर्की का आदेश भी हो चुका था। यहां तक कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त की गिरफ्तारी और प्रभावी विवेचना के लिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी पत्र लिखे गए लेकिन इन सबके बावजूद अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं किया जा सका।न्यायालय ने कहा कि इस मामले में विवेचनाधिकारी की भूमिका व उसके सहभागिता पर तो टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है, यह उसके आचरण से ही स्पष्ट हो जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि सत्र न्यायालय ने मामले के इन पहलुओं पर गौर किये बगैर अग्रिम जमानत अर्जी मंजूर कर ली। न्यायालय ने पाया कि मामले में चार्ज शीट दाखिल हो चुकी है, लिहाजा आदेश दिया कि अभियुक्त ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करे।
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