यूपी विधानसभा कई बार तीखी बहस की गवाह बनी By tanveer ahmad2019-11-10

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10-11-2019-
\r\nसुप्रीम कोर्ट का अयोध्या मसले पर बहुप्रतीक्षित फैसला आखिर आ ही गया। इसके साथ ही पूरे विवाद और संघर्ष का अध्याय समाप्त हुआ। पिछले तीस सालों में इस विवाद से जुड़ी दो बड़ी घटनाएं देश में सियासी बदलाव की वजह बनीं। सामाजिक ताने-बाने पर भी असर डाला। इस विवाद के दो बड़े किरदार कल्याण सिंह व मुलायम सिंह रहे। एक के राज में छह दिसंबर की घटना हुई तो दूसरे के राज में कारसेवकों पर गोलीकांड। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश विधानसभा भी बड़ी चर्चा की गवाह बनी।  अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीकांड के बाद देश भर में माहौल गरमा गया था। सियासी घटनाक्रम तेजी से बदलने लगा। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे। ऐसे में नवंबर 1990 के तीसरे हफ्ते में विधानसभा का सत्र बुलाया गया और उसमें मुलायम ने अपनी सरकार के प्रति विश्वास मत हासिल किया। उसी विश्वास मत प्रस्ताव पर चली बहस में मुलायम ने गोलीकांड पर अपना पक्ष रखा और भाजपा को निशाने पर लिया तो भाजपा नेता कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह यादव सरकार को अत्याचारी बताया।  पेश है रिपोर्ट:-\r\n
स्थान : उत्तर प्रदेश विधानसभा  
तारीख    20 नवंबर 1990 
मौका    सदन में मुलायम सिंह द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा\r\nमुलायम सिंह यादव\r\nअध्यक्ष महोदय, जनता को बताना चाहता हूं कि राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के विवाद का सहारा लेकर किस तरह एक लोकप्रिय सरकार को नीचा दिखाने और देश की करोड़ों जनता के साथ छल करने की कोशिश की गई। ऐसी  स्थिति पैदा की गई कि एक राजनीतिक समस्या का राजनीतिक समाधान करने के बजाय प्रशासनिक समाधान करने की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार पर आ गई। ...अयोध्या का विवाद एक धार्मिक मुद्दा है जिसे भाजपा व  विश्व हिंदू परिषद ने राजनीतिक मसला बना दिया। ...बड़े अफसोस की बात है कि देश की सम्मानित कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने साम्प्रदायिक ताकतों को साथ दिया। विश्व हिन्दू परिषद व भाजपा ने सारी जिम्मेदारी और विश्वास पूर्व प्रधानमंत्री  को सौंप रखे थे। तीनों में से किसी ने उत्तर प्रदेश की सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत नहीं समझी। .... तो मान्यवर, विश्व हिंदू परिषद ने प्रस्ताव पास कर चार महीने का मौका दिया, पूर्व प्रधानमंत्री को। 23-24 जून को प्रस्ताव  पास होता है कि मंदिर बनाओ, मुलायम हटाओ....। मुझे कोई मौका नहीं दिया...... इसके दोषी पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह हैं। मैं उन्हें 1980 से पहचानता था। सदन में इस पर शोरशराबा शुरू हो गया। \r\nकल्याण सिंह \r\nमान्यवर, अयोध्या के अंदर उस बाबरी मस्जिद के अलावा पांच मस्जिदें और हैं। अगर मस्जिद तोड़ने का किसी का इरादा होता तो वह मस्जिद तोड़ने की बात सोचता लेकिन कारसेवकों ने किसी मस्जिद को छुआ तक नहीं। अगर वहां कारसेवकों को जाने दिया होता और उन्हें बीच में रोका गया न होता, तो निश्चित तौर पर 30 तारीख को जो हादसे हुए हैं, वे टाले जा सकते थे लेकिन 30 तारीख को अपनी पराजय के बाद उस दिन मुख्यमंत्री जी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। इसी वजह से संबंधित अधिकारियों को खूब डांटा और आदेश दे दिया कि इन सब कारसेवकों को मौत के घाट उतार दो और लाशें भी मत गिनो। इस तरह जितनी गोलियां चाहीं चलवाईं। (आरोप प्रत्यारोप से व्यवधान)\r\nफिर मान्यवर, इस बीच जो भी हुआ और फिर दो नवंबर को अयोध्या में जो कुछ हुआ और  प्रदेश में नरसंहार हुआ, उस पर मानवता सदियों तक रोएगी जबकि सभी कारसेवक शांत थे। निहत्थे थे। वे जय सिया राम, जय-जय राम के नारे लगा रहे थे। उन पर गोलियां चलाई गईं। (आरोप प्रत्यारोप के कारण घोर व्यवधान)यही कहना चाहता था कि दो नवंबर को अयोध्या में नरसंहार  बड़ी क्रूरता व निर्ममता से हुआ। बेतहाशा गोलियां चलाई गईं। मुलायम सिंह ने सरकारी प्रचार माध्यमों से झूठ बुलवाया। शहीदों की संख्या सैकड़ों में है। आपको मरने वालों से कोई मोह नहीं है। सत्तापक्ष में बैठे लोगों में संवेदना नाम की कोई चीज ही नहीं है। मैं कहता हूं डायर ने भी इतना जघन्य हत्याकांड नहीं करवाया जितना इन्होंने करवाया है। अगर सरकार में हिम्मत है तो 30 अक्तूबर व 2 नवंबर को अयोध्या में जो नरसंहार हुआ है, उसकी जांच उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश से कराई जाए। \r\nतारीख
22 दिसंबर 1993   
मौका , राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा \r\nछह दिसंबर की घटना के बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई। राष्ट्रपति शासन लगा। फिर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए। सपा-बसपा गठबंधन के  नेता के तौर पर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। भाजपा को सबसे बड़ा दल होने के बावजूद विपक्ष में बैठना पड़ा। विधानसभा में कल्याण सिंह नेता विपक्ष थे। राज्यपाल के अभिभाषण पर चली चर्चा में कल्याण व मुलायम सिंह दोनों ने अपनी अपनी बात रखी। \r\nकल्याण सिंह  (नेता प्रतिपक्ष): ....6 दिसंबर को ढांचा टूट गया। क्या गजब हो गया। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। क्या प्रधानमंत्री जिम्मेदार नहीं हैं, जो 4 महीने तक लगातार मामले को उलझाते रहे। मेरे बिना मांगे 185 कंपनी केंद्रीय सुरक्षा बल भेजकर अयोध्या को छावनी बना दिया गया? क्या रामो-वामो के नेता उसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं जिन्होंने उत्तेजक भाषण दिया कि कारसेवा किसी भी कीमत पर नहीं होने दी जाएगी। अगर छह दिसंबर से पहले फैसला आ जाता तो स्थिति कुछ भिन्न होती। जहां तक ढांचे की सुरक्षा का संबंध है तो हमने ढांचे की सुरक्षा का पक्का इंतजाम किया। \r\nएक सदस्य- विवादित ढांचा नहीं मस्जिद कहें 
कल्याण सिंह- यही तो प्रधानमंत्री ने गजब किया था, मस्जिद कहा और दंगे हो गए और यह न्यायपालिका का भी अपमान है क्योंकि न्यायपालिका ने भी विवादित ढांचा कहा है। अगर उन्होंने यह न कहा होता तो देश के अंदर जो स्थिति पैदा हुई है वह नहीं पैदा हुई होती। ....हमने पहले भी कहा था आज भी कहता हूं, स्थानीय प्रशासन का भी कहना था कि लाखों की भीड़ है। गोली चलाएंगे तो उसका रिएक्शन प्रदेश व देश में भी हो सकता है। \r\nमेरे पास स्थानीय प्रशासन के आकलन से असहमत होने का कोई कारण नहीं था। हमने कह दिया कि गोली न चलाइए। लिखित आदेश दिया। .....मेरे ऊपर राजनीतिक कारणों से केस चलाया जा रहा है। हम लोगों से कोई गलती नहीं हुई है। न कभी हमने न्यायालय का अपमान किया है और न कभी माननीय न्यायालय की अवमानना की है। \r\nमुलायम सिंह यादव (नेता सदन) : मान्यवर, 27 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया।  23 नवंबर को राष्ट्रीय एकता परिषद को आश्वस्त किया कि हर हालत में मस्जिद की रक्षा होगी। इसकी आपने कसम खाई थी। किन्तु आपने छह दिसंबर 1992 को मस्जिद गिरवा दिया। हमने तो 30 अक्तूबर 1992 को हमने कह दिया था कि देश में संविधान,  न्यायपालिका व देश की  एकता से बढ़कर कुछ नहीं है। हमारे सामने संविधान का सवाल था। देश की एकता के लिए 16 जानें गईं। इसका मुझे अफसोस है। आपने मस्जिद गिरवा दिया। इससे दुनिया में हमारा सर शर्म से झुक गया। यह लड़ाई हिंदू मुसलमान की नहीं बल्कि वोट के खातिर कट्टर हिंदूवाद की लड़ाई है।  

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