अयोध्या मामले में पुनर्विचार याचिका के सफल होने की गुंजाइश कम By tanveer ahmad2019-11-17

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17-11-2019-अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने सोच रहा है लेकिन इस याचिका के कोर्ट में सफल होने की संभावनाएं बेहद कम हैं। जानकारों का कहना है फैसला सर्वसम्मति से है जिसमें विरोध या नाराजगी का कोई सुर नहीं है, इसलिए रिव्यू याचिका का विफल होना तय है। यदि फैसले में एक भी विरोधी सुर होता तो रास्ता आसान हो सकता था। जैसे सबरीमाला मंदिर के मामले में हुआ। इसमें एक जज इंदु मल्होत्रा का फैसले में कड़ा विरोध था।रिव्यू के दौरान इस विरोध में एक और जज जुड़ गए और कोर्ट ने उस पूरे मामले को सात जजों की पीठ को सौंप दिया। हालांकि पूर्व के फैसले पर कोई रोक नहीं लगाई गई है और महिलाएं मंदिर में आ-जा सकती हैं। मगर इस मामले यह बहुत अहम है कि ये मामला एक रिट जनहित याचिका के आधार पर था जिसका दायर बढ़ाया या घटाया जा सकता है।वहीं, मौजूदा केस एक शुद्ध दीवानी विवाद है जो लिखित प्लैंट और दलीलों के आधार पर आगे बढ़ता है। अपराधिक मुकदमे में भी गुंजाइश होती है कि सुनवाई में अतिरिक्त सबूत या गवाहों को बुला लिया जाए, लेकिन दीवानी केस में इसकी अनुमति नहीं है। एकबार लिखित में जो मुकदमा दे दिया, वह अंतिम हो जाता है।इस कारण मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन मिली : जानकारों के अनुसार, मुस्लिम पक्ष जिस बिंदु को अपने पक्ष में मान रहा है वह यह है कि कोर्ट ने 1949 में चोरी से मूर्तियां ढांचे में रखना और उसके चालीस साल बाद 1992 में उस ढांचे को ध्वस्त कर देना बहुत ही गैरकानूनी और धर्मनिर्पेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ करार दिया है। इस ध्वस्तीकरण के कारण ही मुसलमनों को बतौर मुआवजा अयोध्या में
मस्जिद के लिए पांच एकड़ का प्लॉट देने का आदेश दिया गया है। मुकदमे में मुस्लिम पक्ष की यह मांग नहीं थी कि उन्हें वैकल्पिक प्लॉट दिया जाए, लेकिन कोर्ट ने पूर्ण न्याय करते हुए अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल कर प्लॉट देने का आदेश दिया। कोर्ट ये राहत देने से गुरेज भी कर सकता था क्योंकि ये कभी मांगा ही नहीं गया।डिक्री भगवान राम और श्रद्धालुओं के पक्ष में की गई : दरअसल ये ढांचा एक केस प्रॉपर्टी था जिसे कोर्ट का फैसला आने तक बरकरार रखा जाना चाहिए था। ये सरकार का फर्ज था कि इसकी सुरक्षा करे। इसकी सुरक्षा में विफल रहने के लिए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को कोर्ट ने एक दिन के लिए जेल भी भेजा था। वहीं ढांचा तोड़ने के मामले में लखनऊ में विशेष सीबीआई कोर्ट तमाम नेताओं और करसेवकों के खिलाफ अपराधिक मुकदमा चल रहा है।उसका फैसला अगले साल अप्रैल में आ सकता है। दूसरे यह कि तथाकथित मस्जिद तोड़ने पर गई कठोर टिप्पणियां तब महत्वपूर्ण होती जब मामला मुस्लिम पक्षकारों के पक्ष में डिक्री होता। चूंकि मामला रामलला विराजमान के पक्ष में डिक्री हुआ इसलिए ढांचा उतना महत्पूर्ण नहीं रह गया। क्योंकि हिन्दू पक्ष वहां मंदिर ही बनाता। इसके अलावा ढांचा तोड़ने में शामिल रहे वीएचपी, हिन्दू महासभा आदि को कोर्ट ने कुछ नहीं दिया है। डिक्री भगवान राम और श्रद्धालुओं के पक्ष में की गई है।मुस्लिम पक्ष इन मुद्दों को साबित नहीं कर पाया
इनमें विवदित स्थल पर एडवर्स कब्जा, लंबे समय से इस्तेमाल के कारण वक्फ की संपत्ति बन जाना, स्थल पर मंदिर नहीं ईदगाह का होना, सरकारों और शासकों की मस्जिद को दी गई ग्रांट का खो जाना, 1949 तक लगातार नमाज पढ़ना, एएसआई (लखनऊ हाईकोर्ट बेंच ने 2003 में विभाग को खुदाई कर यह देखने का निर्देश दिया था कि यहां 400 साल पहले मस्जिद बनने से पूर्व हिन्दू मंदिर था कि नहीं। इसे कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट कहा गया और ये कोर्ट में मान्य रही) की रिपोर्ट को नकारना, लेकिन अपने इतिहासकारों की रिपोर्ट (निजी होने कारण कोर्ट में अमान्य) को तवज्जो देना।हिन्दू पक्ष ने इन तथ्यों को साबित किया
जबकी हिन्दू पक्ष ने 1855 से एडवर्स कब्जा साबित किया, लगातार पूजा, स्थल की पवित्रता और 12वी शती में वहां भव्य मंदिर का होना, उसमे हिन्दू समुदाय की गहरी आस्था को ग्रंथों, गजेटियर, रिपोर्ट्स, यात्रियों के विवरण और अदालती आदेश आदि से साबित करना।फैसला देने वाले जज ही सुनते है पुनर्विचार याचिका  
यदि कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल होती है तो उसे फैसला देने वाले जज ही सुनेंगे। इसमें एक जज बदलने कि उम्मीद है क्योंकि फैसला देने वाली बेंच के मुखिया जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। उनकी जगह कौन जज पीठ में आयेगा ये नए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे तय करेंगे।किताब को नहीं किया स्वीकार
मुस्लिम पक्ष ने जो मुद्दे उठाए कोर्ट ने उन पर पूरी सुनवाई की। गौरतलब है कि जन्म स्थान पुनरोधार समिति के वकील ने कोर्ट में एक किताब का जिक्र किया था जिसमें जन्मस्थान का नक्शा था, कोर्ट ने उस स्वीकार नहीं किया। क्योंकि ये ट्रायल के दौरान हाईकोर्ट में नहीं रखा गया था। मुस्लिम पक्ष के वकील ने नक्शा देने का भारी विरोध किया था और उसे कोर्ट में ही फाड़ दिया था।

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