पांपोर जामिया मस्जिद संकट ने दिलाई चरार-ए-शरीफ-हजरतबल दरगाह संकट की याद, जानिए क्या था मामला! By एजेंसी2020-06-19
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19-06-2020-श्रीनगर। केसर की क्यारी के नाम से मशहूर पांपोर में लगभग 32 घंटे बाद जामिया मस्जिद संकट हल हुआ। मस्जिद को नुकसान पहुंचाने और उसके जरिए वादी के लोगों को इस्लाम के नाम पर सुरक्षाबलों के खिलाफ भड़काने का आतंकी मंसूबा नाकाम हाे गया। जितनी देर यह संकट चला, उतनी देर वादी में पुलिस, सेना और नागरिक प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों की जान सांसत में थी। सभी दुआ कर रहे थे कि कहीं दूसरा चरार-ए-शरीफ या हजरतबल दरगाह संकट न बने। बीते तीन दशकों के दौरान यह काेई पहला मौका नहीं था, जब आतंकी किसी मस्जिद में घुसे हों, लेेकिन जब-जब ऐसा कुछ होता है तो लोग सिहर जाते हैं। श्रीनगर से कुछ ही दूरी पर स्थित नौगाम में आकर बसे बिलाल कुमार ने कहा कि खुदा का शुक्र है कि किसी का घर नहीं जला, किसी काे अपना बाप या भाई गंवाना नहीं पड़ा। मैं तो शेख नूरूदीन नूरानी की दरगाह के पास ही रहता था। मेरा मकान वहीं कुम्हार मोहल्ले में था। मैं उस समय 16 साल का था। मस्तगुल जब चरार-ए-शरीफ में आया तो वहां बहुत से लोगों ने खुशियां मनाई, लेकिन जब वह गया तो पूरा कस्बा श्मशान था। मेरे पिता अली माेहम्मद ने हम सभी को अप्रैल माह के अंतिम दिनों में नागम में भेज दिया था। मैं 13 मई को जब अपने घर को देखने पहुंचा तो मुझे मेरे पिता की जली हुई लाश मिली। चरार-ए-शरीफ से कुछ ही दूरी पर बसी आलमदार कॉलोनी में रहने वाले नजीर बाबा ने बताया कि यहां जाे भी बसा है, चरार से उजड़ कर आया है। लगभग दो माह तक आतंकवादियों को सुरक्षाबल, उलेमा दरगाह छोड़ने के लिए मनाते रहे। अगर कस्बे से अधिकांश लोगों ने पहले ही दूसरी जगहों पर शरण न ली होती तो आतंकवादियों की दरगाह में लगाई आग में शायद ही काेई जिंदा बचता। आतंकवादियों ने हमारी आस्था, हमारे इस्लाम को बहुत गहरे जख्म दिए हैं। मैं उस दिन चरार में ही था, तड़के दरगाह में आग लगी, दरगाह के आस-पास तंग गलियों में मकान थे। उनमें ज्यादातर लकड़ी ही लगी थी। इसलिए आग तेजी से फैली, जिसे जिधर मौका मिला, उधर जान बचाने भागा। दमकलकर्मी और फौज कहां-कहां आग बुझाती। एक तरफ आतंकी गोलियां बरसा रहे थे तो दूसरी तरफ आग कस्बे को जला रही थी। पांपाेर में भी एेसा ही होता, क्योंकि वहां जामिया मस्जिद भी मोहल्ले के भीतर ही स्थित है।
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