डॉ कुमार विश्वास ने पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं को आधुनिक अंदाज में किया पेश By (तनवीर अहमद सिद्दीकी/संवाददाता)2020-11-23
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23-11-2020-लखनऊ। किसी के दिल की मायूसी जहां से होकर गुजरी है हमारी सारी चालाकी वहीं पर खोकर गुजरी है, तुम्हारी और मेरी रात में बस फर्क इतना है तुम्हारी सोकर गुजरी है हमारी रोकर गुजरी है। लविवि के 100 वें स्थापना दिवस के मौके पर सोमवार की शाम डॉ कुमार विश्वास की कविताओं से सजी। उन्होंने अपने प्रख्यात मुक्तकों के अतिरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं को युवाओं को आधुनिक अंदाज में पेश कर के मन मोह लिया। इस मौके पर प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्री नीलकंठ तिवारी मुख्य अतिथि रहे। उनके साथ कुलपति प्रो आलोक कुमार राय ने कार्यक्रम की शुरुआत की। गोमती का मचलता ये पानी भी है , हिंद की उस ग़दर कहानी है इसमें नागर की जुबानी भी है, इस कविता के जरिये विश्वास ने लखनऊ को खुद से जोड़ा। कविताओं के बीच कुमार ने विश्वविद्यालय और अटल बिहारी बाजपेई की यादों से भी खुद को जोड़ा और अपने साथ युवाओं को झूमता हुआ पाया।\r\nउन्होंने आगे पढा जवानी में कई गज़लें अधूरी छूट जाती हैं, मैं या तुम समझ लें इशारा कर लिया मैंने , भरोसा बस तुम्हारा था, तुम्हारा कर लिया मैंने,लहर है हौसला है, रब है हिम्मत है दुआएं हैं किनारा करने वालों से किनारा कर लिया मैंने..।\r\nकुमार विश्वास ने आखिर में गाया अपना हस्ताक्षर गीत कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी तो बस बादल समझता है को अनेक अंदाज में गाकर लाखों तालियां बंटोरी।\r\n75 वें स्थापना दिवस पर भी मैंने पढ़ी थी कविता\r\nकुमार विश्वास संस्मरण सुनाया कि जब विश्वविद्यालय के 75 वर्ष पूरे हुए थे तब भी मैंने यहां कविता पढ़ी थी। यही नहीं वर्तमान मंत्री ब्रजेश पाठक के पास जब प्रिया स्कूटर थी तब मैं आता था और चारबाग के मोहन होटल में रुकता था।\r\nकेजरीवाल पर कविता से किया हमला\r\nमुझे वो मार कर खुश है कि सारा राज उस पर है, यकीनन कल है मेरा आज बेशक आज उस पर है, उसे जिद थी झुकाओ सिर, तुझे दस्तार बख्शऊंगा , मैं अपना सिर बचा लाया, महल और ताज उस पर है।
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