पंचायत चुनाव में नए सिरे से होगा आरक्षण, हाई कोर्ट का 27 तक संशोधित सूची जारी करने का निर्देश By (तनवीर अहमद सिद्दीकी/संवाददाता)2021-03-15
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15-03-2021-लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण सूची में खामी को लेकर सरकार ने अपनी गलती मानी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में वर्ष 2015 के आधार पर आरक्षण प्रणाली को लागू कर पंचायत चुनाव कराने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए जारी की गई आरक्षण प्रणाली नहीं चलेगी, बल्कि वर्ष 2015 को आधार मानकर ही आरक्षण सूची जारी की जाए।उत्तर प्रदेश में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए अब नए सिरे से आरक्षण होगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार एवं राज्य चुनाव आयोग इस चुनाव के लिए 2015 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण की व्यवस्था करने का आदेश दिया है। अदालत ने इसके साथ ही सरकार व आयोग को दस दिन का और समय प्रदान करते हुए 25 मई तक समस्त चुनावी प्रकिया पूरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार द्वारा चुनाव कराने के संबध में जारी 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को भी यह कहकर रद कर दिया कि उससे आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत से बाहर जा रही थी। यह आदेश जस्टिस रितुराज अवस्थी व जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने अजय कुमार की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया। याचिका में 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। साथ ही चक्रानुक्रम आरक्षण के लिए 2015 को आधार वर्ष न मानकर 1995 को आधार वर्ष मानने को मनमाना व गलत करार देने की मांग की गई थी। इससे पहले अदालत ने 12 मार्च को अंतरिम आदेश जारी कर 17 मार्च 2021 तक आरक्षण सूची को अंतिम रूप देकर जारी करने पर रोक लगा दी थी और सरकार व आयोग से जवाब तलब किया था। महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने सोमवार को राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए माना कि सरकार ने 1995 को आधार वर्ष मानकर गलती की। उन्होंने कहा कि सरकार को 2015 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण और सीटों के अलाटमेंट की प्रकिया पूरी करने में कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने सरकार की ओर से दिए गए लिखित निर्देश की प्रति अदालत को पेश की जिसे रिकार्ड पर लिया गया।याचिका पर बहस करते हुए याची के अधिवक्ता मोहम्मद अल्ताफ मंसूर ने कहा कि सरकार ने 11 फरवरी 2021 को जो शासनादेश जारी किया है, वह भी असांविधानिक है क्योंकि इससे आरक्षण का कुल अनुपात पचास प्रतिशत से अधिक हो रहा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की हाल ही एक नजीर भी पेश की जिसमें उसने महाराष्ट्र सरकार के इसी प्रकार के एक आदेश को रद कर दिया था। अदालत ने अधिवक्ता मंसूर की दलील को मानते हुए 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को रद कर दिया। सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह व आयोग के वकील अनुराग कुमार सिंह ने कहा कि अब आरक्षण प्रकिया 2015 को आधार वर्ष मानकर पूरी करने में समय लगेगा। आरक्षण व आवंटन के लिए पहले दी गई समय सीमा को 17 मार्च से बढ़ाकर 27 मार्च कर दिया जाए । साथ ही यह भी मांग की कि चुुनाव प्रकिया पूरी करने के लिए पूर्व में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तय की गई समय सीमा 15 मई से बढ़ाकर 25 मई कर दी जाए। अदालत ने सभी पक्षों की सहमति से ये मांगें मान लीं।
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