सूबे की पंचायतों में इस बार तजुर्बे के मुकाबले जोश को तरजीह, बदला माहौल By (तनवीर अहमद सिद्दीकी/संवाददाता)2021-04-01

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01-04-2021-
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में गांव की सरकार चुनी जाने का बिगुल बजने के बाद दृश्य भी अलग दिख रहा है। इस बार युवाओं और महिलाओं को पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में मौका मिलेगा। विकास कार्यों के साथ ही साथ महिला सशक्तिकरण अभियान से गांवों का माहौल काफी बदला है।उत्तर प्रदेश की पंचायतों का परिदृश्य बदल रहा है। कुछ वर्ष पहले सूबे के ग्रामीण क्षेत्रों में इलाके के सबसे बुजुर्ग को पंचायत की कमान सौंपना सबसे तसल्लीबख्श काम माना जाता था, लेकिन अब माहौल बदला है। सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार के महिला सशक्तिकरण अभियान और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों के चलते अब ग्रामीण युवा और महिलाएं हर क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहें हैं। ऐसे ही बदले माहौल के बीच बीती 28 मार्च को आगरा में बडेगांव के ग्रामीणों ने पंचायत कर एक शिक्षित बेटी कल्पना सिंह गुर्जर को गांव का प्रधान बनाने का फैसला ले लिया। ग्रामीण लोकतंत्र और आपसी भाईचारे को मजबूत करने की यह एक शानदार पहल है।  अपर निर्वाचन आयुक्त वेदप्रकाश वर्मा मानते हैं कि अब इस तरह की पहल राज्य के अन्य गांवों में भी हो सकती है। इस तरह के प्रयासों से जहां चुनाव खर्च बचता है, वही गांवों में पढ़ा लिखा युवा ग्राम प्रधान बनता है। गुजरात में इस तरह से तमाम लोगों को ग्रामीणों ने ग्राम प्रधान चुना है। वेदप्रकाश को उम्मीद है कि बीते पंचायत चुनावों के मुकाबले इस बार बड़ी संख्या में पढ़े लिखे युवा और महिलाएं गांव की राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने उतरेंगे। इसके चलते गांवों में विकास संबंधी कार्यों में तेजी आयेगी और ग्रामीण लोकतंत्र भी मजबूत होगा। अपर निर्वाचन आयुक्त वेदप्रकाश वर्मा के यह कथन पंचायत चुनाव के आंकड़ों पर आधारित है। पंचायत चुनावों के पुराने नतीजे यह बताते हैं कि गांवों का परिदृश्य लगातार बदल रहा है। अब चुनाव दर चुनाव युवा प्रत्याशियों की जीत का ग्राफ बढ़ रहा है। वर्ष 2015 में पंचायत चुनाव जीतने वाले कुल उम्मीदवारों में 21 से 35 साल वालों की संख्या लगभग 35.18 प्रतिशत थी। इस चुनाव में 43.8 प्रतिशत महिला उम्मीदवार चुनाव जीती थी। चुनाव जीतने वालों में मात्र 9.6 प्रतिशत ही निरक्षर उम्मीदवार चुनाव जीते थे। इस बदलाव को लेकर जय नारायण पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के एसोसियेट प्रोफेसर बृजेश मिश्र कहते हैं कि अब पंचायत चुनाव जिस तर्ज पर होने लगे हैं, उसमें बड़ी उम्र के लोग धीरे-धीरे अनफिट होते जा रहे हैं। दूसरे अब पंचायतों की भूमिका भी बदल गई है। पंचायतें पहले आपसी झगड़ा-झंझट निपटाने का केंद्र हुआ करती थी, लेकिन अब वह विकास की धुरी बन चुकी हैं। आम लोग विकास को लेकर बहुत जागरूक हुए हैं। वह अपने इलाके का ज्यादा से ज्यादा विकास चाहते हैं। उन्हेंं लगता है कि किसी बड़ी उम्र वाले व्यक्ति के मुकाबले एक युवा ज्यादा दौड़-धूप कर विकास के साधन की जुटान कर सकता है। इसी कारण पंचायतों में अब ज्यादा नई उम्र के लोग जीत कर आ रहे हैं।

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