कोविड मरीज रेमडेसिवीर के पीछे न करें 20 हजार खर्च, दो रुपये की डेक्सामेथासोन भी कारगर By (तनवीर अहमद सिद्दीकी/संवाददाता)2021-04-21

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21-04-2021-लखनऊ । कोरोना से संक्रमित अपने परिजन की जान बचाने के लिए रेमडेसिवीर की मुंह मागी कीमत लोग देने को तैयार जिन्होंने किसी तरह पा लिया और लगवा भी दिया क्या वह बच गए यह बडा सवाल है। इस बारे में विशेषज्ञ कहते है कि इस इंजेक्शन का कोई खास फायदा नहीं है इसलिए इस दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता नहीं दिया।रेमडेसिवीर का वहीं हाल है जैसे वायरल फीवर में एंटीबायोटिक खाओ तो सात दिन में ठीक न खाओ तो भी सात दिन में ठीक.........एआरडीएस रोकने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। रिसर्च सोसाइटी ऑफ एनेस्थीसिया एंड क्लीनिकल फार्माकोलॉजी के सचिव और  संजय गांधी पीजीआइ  के आईसीयू एक्पर्ट प्रो, संदीप साहू ने साफ शब्दों में कहा कि रेमेडिसवीर के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है। डॉक्टर भी तीमारदार को इसके पीछे भागने के रोकें। कोरोना संक्रमित में एआरडीएस रोकने में कोई खास फायदा नहीं है। न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन के हाल के शोध का हवाला देते हुए प्रो. साहू कहते है कि डेक्सामेथासोन सबसे सस्ती और आसानी से मिलने वाली दवा है। यह दवा एआरडीएस रोकने में काफी कारगर साबित होती है। ऐसा हमने में भी कोरोना मरीजों में देखा है खास तौर पर जिनमें लो ऑक्सीजन की जरूरत है । इनमें यह आठ से दस मिली ग्राम 24 घंटे में एक बार देने से वेंटिलेटर पर जाने के आशंका काफी कम हो जाती है।शोध वैज्ञानिकों ने दो हजार कोरोना संक्रमित ऐसे मरीजों पर शोध किया जिनमें आक्सीजन लेवल 90 से कम था इन्हें डेक्सामेथासोन देने के बाद 28 दिन बाद परिणाम देखा गया तो पता चला कि इनमें मृत्यु दर कम थी इसके साथ ही वेंटिलेटर की जरूरत कम पडी। रेमडेसिवीर  केवल एक खास वर्ग में राहत दे सकती है।  हाई ऑक्सीजन की जरूरत होती है। यह केवल पहले सप्ताह में ही देने से  राहत की संभावना होती है। इस दवा का कोई खुली स्टडी नहीं है केवल फार्मा इंडस्ट्री द्वारा प्रायोजित शोध ही सामने आए है। तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (एआरडीएस) एक ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों की हवा की थैलियों में तरल जमा हो जाने के कारण अंगों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। गंभीर रूप से बीमार या कोरोना संक्रमित लोगों में सांस संबंधित तंत्र में गंभीर समस्या का सिंड्रोम हो सकता है। यह अकसर घातक होता है। उम्र के साथ खतरा और बीमारी की गंभीरता से बढ़ती जाती है। एआरडीएस से पीड़ित लोगों को गंभीर रूप से सांस की तकलीफ होती है और वेंटीलेटर के सहारे के बिना वे खुद सांस लेने में असमर्थ होते हैं।

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