डलमऊ ब्लाक के कुडवल गांव में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया अवंतीबाई लोधी का जन्मदिन By बलवंत कुमार2021-08-16
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16-08-2021-
रायबरेली, डलमऊ ब्लाक के कुडवल गांव में बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया अवंतीबाई लोधी का जन्मदिन, मुख्य अतिथि के रूप में रामकेश लोधी,वा विशिष्ट अतिथि रामबिलास लोधी,(उमाशंकर लोधी उत्तर रेलवे लखनऊ) (बलवंत कुमार पत्रकार रायबरेली)की अध्यक्षता में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।हम आपको बता दें सन 1857 में रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य अस्वस्थता के चलते निधन हो गया। राजा के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही रानी अवंतीबाई ने राज्य का कारभार संभाला।ब्रिटिश शासन के तात्कालीन गवर्नर लार्ड डलहौजी को रानी का राज करना पसंद नहीं आया। डलहौजी ने रामगढ़ रियासत को कोर्ट ऑफ वार्डर के आधीन कर लिया। ब्रिटिश शासन ने रामगढ़ में तहसीलदार नियुक्त कर दिया। यह बात रानी अवंतीबाई लोधी को पसंद नहीं आई। रानी अवंती बाई लोधी ने कोर्ट ऑफ वार्डर के अधिकारियों को रामगढ़ से भगा दिया।. इस घटना के बाद अंग्रेज और रानी अवंतीबाई प्रत्यक्ष रुप से आमने,सामने आ गए।रामगढ़ सम्मेलन से ही आजादी के आंदोलन की रणनीति बनी और धीरे-धीरे शहपुरा के जमींदार विजय, मंडला के जमींदार उमराव सिंह जिनका मुख्यालय खरदेवरा था और नारायणगंज के जमींदार सभी ने रानी अवंतीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। इतिहासकार नरेश जोशी के अनुसार एक समय ऐसा भी आया, जब 22 या 23 नवंबर को अट्ठारह सौ सत्तावन में मंडला के खैरी में आजादी के इन जांबाज योद्धाओं की सेना और अंग्रेजी सेना के बीच एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना परास्त हो गई और मंडला का डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन को जान बचाकर भागना पड़ा, जिसके बाद यहां के तहसीलदार और थानेदार भी भाग खड़े हुए और मंडला पूरी तरह से अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से स्वतंत्र हो गया। देश को आजाद कराने में अवंती बाई लोधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।रानी और ब्रिटिश हुकूमत के आमने-सामने आने के बाद तात्कालीन मंडला डिप्टी कमिश्नर वांडिगटन लम्बे ने रिवा नरेश के साथ मिलकर रामगढ़ पर हमला बोल दिया. ब्रिटिश और रिवा की सेना के सामने रानी अवंतीबाई की सेना छोटी पड़ गई. रानी अवंतीबाई ने युद्ध के दौरान किला छोड़कर देवहारगढ़ की पहाड़ियों की तरफ प्रस्थान किया. रानी को अंग्रेज और रिवा की सेना ने घेर लिया. रानी अवंतीबाई को अंग्रेजों ने आत्मसमर्पण करने को कहा. रानी अवंतीबाई ने झुकने से ज्यादा मरना मुनासीफ समझा और अपने सैनिक के हाथ से तलवार छीनकर स्वयं को तलवार भोंककर देश के लिए बलिदान दे दिया इस मौके पर बीरेंद्र मोहन,सुंदर,अगंनू, राजकुमार, रामकुमार,सरिता, मनीष कुमार,मौसम, अमरजीत, रिद्धी, हिमांशी, दिव्यांशु राजपूत, आदि कार्यकर्ता मौजूद रहे हैं।
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