डलमऊ कोतवाली क्षेत्र में दर्जनों की संख्या में चल रही अवैध लकड़ीयो की कोयला भठ्ठिया By बलवंत कुमार 2021-09-09

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09-09-2021-

डलमऊ रायबरेली। डलमऊ कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत दर्ज की संख्या में लकड़ी की कोयला भठ्ठिया धधक रही है।हम आपको बता दें वन क्षेत्र अंतर्गत मुनाफाखोरी के लिए प्राकृतिक दोहन और पर्यावरण प्रदूषण की दोहरी चपत लगाई जा रही है। कोयला भट्टी अधिनियमाें को दरकिनार कर डलमऊ क्षेत्र में मानकाें के विपरीत भट्टियाें का संचालन किया जा रहा है। वन विभाग महकमा भी इस कारोबार पर हो रही नियमित अनदेखी से खामोश है। जनपद के डलमऊ  क्षेत्र में कई वर्षों से कोयला भठ्ठिया गैर कानूनी ढंग से संचालित की जा रही है। कायदे कानूनाें को नजरंदाज कर फिर से यह कारोबार शुरू हो गया है। यहां बड़े पैमाने पर बेशकीमती लकड़ी का कटान कर बगैर वन विभाग के मार्का के ही लकड़ी का उपयोग खुलेआम किया जा रहा है। जिससे प्राकृतिक दोहन तो हो ही रहा है, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ वृक्षारोपण पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहीं हैं। वहीं जनपद के आला अधिकारी अनजान बने बैठे हुए हैं। हरे वृक्षों को काटकर भट्ठियों  में जलाकर कोयला बनाया जाता है। जो गैर कानूनी ढंग से भठ्ठिया संचालित की जा रही है। वन क्षेत्र से पेड़ों की अवैध कटाई के साथ लकड़ी का काेयले बनाने के लिए पेड़ों से गीली (नमी) और छोटी लकड़ियों को भी काटा जा रहा है। कोयला बनाने वाले के अनुसार लकड़ी का कोयला बनाने के लिए गीली लकड़ी सबसे बेहतर होती है। ऐसे में हरे-भरे पेड़ों से लकड़ियां काटकर उपयोग करते हैं। क्षेत्रवासी बताते हैं कि वर्षों से दर्जनों की संख्या में भट्टियां संचालित हो रही है। यही नहीं आसपास भी गुपचुप तरीके से कोयला बनाया जा रहा है




ऐसे बनता है कोयला*

कोयला बनाने वाले ही एक व्यक्ति ने बताया कहीं भी  आवश्यकतानुसार 2 से 4 फीट गहरा और इतना ही लंबा-चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है। उसमें गीली लकड़िया नहीं तो सूखी लकड़ी को गीला करके गड्ढे में जमाकर भरते हैं। नीचे की दो साइड में अंगारे और कपड़ा आदि रख देते हैं। जो धीरे-धीरे जलते रहें। लकड़ियों के ऊपर लोहे का पतरा आदि रखकर ढंक देते हैं, साथ ही मिट्टी डाल देते हैं। इस प्रकार भट्टी तैयार हो जाती है, अंदर जल रहे अंगारे का धुआं निकल सके, इसके लिए बीच व साइड में कुछ जगह छोड़ देते हैं। अंदर लकड़ियां जलती तो हैं लेकिन आॅक्सीजन नहीं मिलने के कारण लकड़ी पूरी तरह जलकर राख नहीं हाेती है। वह लकड़ी को कोयले के रूप में पका देती हैं। करीब 3 से 5 दिन में एक भट्टी काेयला निकालने के लिए तैयार हो जाती है।


*आसपास के क्षेत्र में कहीं खुलेआम तो कहीं चोरी-छिपे लकड़ी का कोयले बनाने की भट्टियां संचालित हैं। तट पर ही 7-8 भट्टियां चल रही हैं जबकि इतनी ही आसपास के क्षेत्रों में हैं। एक भट्टी से एक महीने में औसतन 18 से 20 क्विंटल कोयला तैयार होता है। वन क्षेत्र से पेड़ों की अवैध रूप से कटाई तो हो रही है, दिन-रात निकलने वाला धुआं भी हानिकारक है। इस बात की जानकारी हाेने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी कुछ करने की बजाए, दिखवाने की बात करते हैं

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