हाई स्कूल के अंक रहित अंकपत्रों में अंक देने की आगरा से उठी मांग By विष्णु सिकरवार2022-05-30

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30-05-2022-


 आगरा। कोविड महामारी के चलते वर्ष 2020-2021 सत्र में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा हाई स्कूल तथा इंटर की परीक्षाएं आयोजित नहीं की गई थीं। कक्षा नौ तथा हाईस्कूल की प्री-बोर्ड परीक्षाओं में ऑनलाइन प्राप्त अंकों के आधार पर बोर्ड द्वारा हाईस्कूल के छात्र छात्राओं को अंक प्रदत्त किए थे लेकिन 2020-2021 सत्र में प्रदेश के हजारों छात्र छात्राओं को अंक रहित अंकपत्र दिए गए हैं। जबकि स्कूल द्वारा बोर्ड को कक्षा नौ तथा प्री-बोर्ड के अंक ऑनलाइन भेजे गए थे इसके बावजूद बच्चों को हाईस्कूल में अंक नहीं दिए गए हैं। आगरा के भी भी सैकड़ों बच्चों बिना अंक के अंकपत्र मिले हैं। इससे छात्रों में रोष और असंतोष है। बिना अंकों के बच्चों की कभी मेरिट नहीं बन पाएगी और ये हमेशा के लिए मेरिट की सूची से बाहर हो जाएंगे। किसी भी महाविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में मेरिट के आधार पर प्रवेश  दिया जाता है। यहां तक कि सरकारी/गैर सरकारी नौकरियों के लिए भी अंकों के आधार पर मेरिट तैयार की जाती है और वरीयता के आधार पर चयन किया जाता है लेकिन इन छात्रों के अंक रहित अंकपत्रों से किसी की मेरिट नहीं बन पाएगी। ये हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे। बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। केवल साक्षर ही रह पाएंगे।  
छात्र छात्राओं ने अपने हक की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने इसके लिए चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस से सहयोग मांगा है। उनके मार्गदर्शन में लगभग तीन दर्जन छात्रों ने मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर माध्यमिक शिक्षा परिषद से अंकपत्रों को संशोधित कर अंक दिलाने की मांग की है। नरेश पारस ने कहा कि छात्रहित में बच्चों का पूरा सहयोग किया जाएगा। इसके लिए छात्रों के साथ रणनीति बनाना आरंभ कर दिया है।
बोर्ड को भेजे पत्रों में छात्रों ने मांग की है कि छात्रहित को ध्यान में रखते हुए हाई स्कूल के अंक रहित अंकपत्रों में स्कूल द्वारा ऑनलाइन भेजे गए कक्षा नौ तथा हाईस्कूल की प्री-बोर्ड परीक्षाओं के अंको के आधार पर हाईस्कूल के अंकपत्रों में अंक दिलाने दिलाएं। जिससे बच्चे हीन भावना के शिकार न हों और अपनी आगे की पढ़ाई, प्रतियोगी परीक्षाओं तथा नौकरियों में आवेदन करने के पात्र हो सकें।

विधानसभा में भी उठा मामला

एमएलसी आकाश अग्रवाल ने बच्चों को अंक दिलाने का मुद्दा विधानसभा में उठाया है। उन्होंने कहा कि यह बच्चों के भविष्य के साथ धोखा है तथा यूपी बोर्ड की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग गया है। उन्होंने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी लेकिन कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दी कि यह बच्चों का मामला है। बच्चे यदि कोर्ट आएंगे तो उनके अनुरोध पर विचार किया जा सकता है।

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