गौरी खालसा में अकीदत के साथ निकला चेहल्लुम का जुलूस By शहजान अब्बास नकवी2022-09-19

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19-09-2022-


हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद किया 

शहजान अब्बास नकवी
लखनऊ। हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में सोमवार को इमामबाड़ा गौरी खालसा से कर्बला के शहीदों के चेहल्लुम का जुलूस निकाला गया। जुलूस कर्बला पर जाकर खत्म हुआ। जुलूस में सैकड़ों अजादार शरीक हुए। इसमें पुरुषों के साथ पर्दानशीन महिलाएं व बच्चे शामिल थे। मौलाना गुलाम अब्बास ने मजलिस को खिताब किया। उन्होने कहा कि मजलिस का मकसद है कि कर्बला कि जालिमों के चेहरे को बेनकाब करना। मजलिस के बाद इमामबाड़े व दरगाह से जुलूस निकाला गया। जुलूस में गौरी खालसा की अंजुमन हैदरी व अंजुमन मज़लूमिया ने नौहाख्वानी व सीनाजनी की। अंजुमनों के नौहे सुन अकीदतमंदों की आंखें भर आयीं। जुलूस कर्बला पहुंचने के बाद मौलाना हुसैन मेंहदी ने जियारते आरबईन पढ़ाई।

चेहलुम हमें क्या सिखाता है?

चेहलुम के बाद आशूरा और इमाम हुसैन (अ) का जि़क्र और उनका मक़सद हमेशा के लिए जि़ंदा हो गया और इस काम की नींव चेहलुम के दिन जनाबे ज़ैनब और इमाम सज्जाद (अ) के हाथों इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के पास पड़ी, अगर इमाम हुसैन (अ) के बाद इमाम सज्जाद (अ) औऱ दूसरे बंदियों ने कर्बला की घटना और आशूरा की असलियत बयान न की होती तो आज कर्बला जि़न्दा न होती, जितना बड़ा जिहाद उनके बाद उनके मिशन को सही तरीके बताने वालों और उसे बचाने वालों ने किया है चेहलुम हमें यह सिखाता है कि दुश्मनों के ग़लत प्रोपगण्डों के तूफ़ान के बीच रह कर कर्बला की हक़ीक़त को कैसे जि़ंदा रखना है।

इमाम जाफऱ सादिक़ (अ) से एक हदीस बयान की जाती है कि आपने फऱमाया:-

जो आदमी कर्बला के बारे में एक शेर (पंक्ति) कहे और उससे लोगों को रुलाए उसके लिए जन्नत है इस तरह की हदीसों का क्या मक़सद है? उस वक्त हालात ऐसे थे कि जितनी भी प्रोपगण्डा फ़ैक्ट्रियां थीं उनकी यही एक कोशिश थी कि आशूरा की घटना को उल्टा पेश किया जाए, उसकी हक़ीक़त छुपाई जाए, लोग यह न जानने पाऐं कि हुसैन (अ) कौन थे। अहलेबैत (अ) कौन हैं, उन दिनों भी आज की तरह बड़ी बड़ी ज़ालिम हुकूमतें पैसे और ताक़त के बल पर अपने शैतानी इरादों को पूरा करने के लिए आम लोगों को हक़ीक़त से दूर किया करते और जिस चीज़ को जिस तरह चाहते थे बयान करते थे क्या ऐसी स्थिति में सम्भव था कि आशूरा की इतनी महत्वपूर्ण घटना जो एक बंजर भूमि में घटी थी जहाँ कोई भी नहीं रहता था, उसकी असलियत लोगों के सामने आती और उसे सही तरह से बयान किया जाता? अगर जनाबे ज़ैनब (स) और इमाम सज्जाद (अ) का जेहाद न होता तो यह असम्भव था। (इसी लिए बाद के इमामों ने भी कर्बला और आशूरा को जि़ंदा रखने पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया और मजलिस, अज़ादारी, इमाम हुसैन के ग़म, आंसुओं की श्रेष्ठता बयान की है।) चेहलुम का सबसे बड़ा मक़सद वही होना चाहिए जिससे जनाबे ज़ैनब (स) और इमाम सज्जाद (अ) ने हमें सचेत किया है।

जुलूस के मौके पर पुलिस प्रशासन भी रहा मुस्तैहद

गौरी खालसा में चेहल्लुम के जुलूस के दौरान पुलिस चौकी प्रभारी नीरज कुमार अपने फौर्स के साथ अराजकत्तवों पर कड़ी नजर रखी। चौकी प्रभारी नीरज कुमार अपने फौर्स की मुस्तैहदी में इमामबाड़े से जुलूस मार्ग होते हुए कर्बला तक जुलूस के साथ रहे।  

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