भगवान का सबसे प्रिय भोजन है अहंकार:- श्रद्धेय उज्ज्वल कृष्ण शास्त्री जी महाराज By tanveer ahmad2023-06-05

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05-06-2023-


फोटो कथा व्यास उज्जवल कृष्ण शास्त्री

सोहावल:-अयोध्या बड़ागांव बाजार में आचार्य राजेश तिवारी जी यहां अनवरत प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा के पंचम दिवस भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कथा व्यास उज्जवल कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि भगवान को यद्यपि छप्पन भोग का प्रसाद चढाया जाता है परंतु भगवान का सबसे प्रिय भोजन है अहंकार । अभिमान का हरण भगवान अवश्य करते हैं । कुछ लोग अभिमान को स्वाभिमान की संज्ञा दे देते हैं परंतु स्वाभिमान में भी तो अभिमान ही है स्वाभिमान का अर्थ हुआ स्वयं का अभिमान तो अभिमान कैसा भी हो उसे उचित नहीं कहा जा सकता । बाल कृष्ण का वध करने आई पूतना को यह अभिमान था कि मुझसे सुंदरी स्त्री कोई दूसरा नहीं है और मैं कालकूट विष पिलाकर के इस बालक का वध कर दूंगी परंतु भगवान बालकृष्ण ने पूतना को ही नहीं अपितु शकटासुर , तृणावर्त अघासुर बकासुर आदि के अभिमान का मर्दन करते हुए सब का वध किया । भगवान श्री कृष्ण का जन्म पंचतत्वों को शुद्ध करने के लिए हुआ ! पृथ्वी जल अग्नि पवन एवं आकाश इन पंच तत्वों से सृष्टि का सृजन हुआ है इन पंच तत्वों को शुद्ध करने के लिए ही भगवान का प्रादुर्भाव हुआ । सबसे पहले भगवान ने मृदाभक्षण करके पृथ्वी तत्व को शुद्ध किया । बवंडर रूप में आए हुए तृणावर्तका वध करके भगवान ने वायु तत्व को शुद्ध किया , उसके बाद यमुना जी के कालियादह में निवास कर रहे विषधर कालिया नाग का दमन करके यमुना के जल को शुद्ध किया और जल तत्व का परिमार्जन किया । कालिया मर्दन के बाद सभी लोगों ने रात्रि हो जाने के कारण उस यमुना तट पर निवास किया । अचानक रात्रि में पूरे जंगल में आग लग गई बाल कृष्ण कन्हैया ने जब देखा कि हाहाकार मच गया है तो सबको आंख बंद करने के लिए कहा और जैसे ही सब ने आँख को बंद किया तुरंत अंजुरी में भरकर पूरी अग्नि को पी लिया इस प्रकार भगवान ने अग्नि तत्व को शुद्ध किया । देवताओं के राजा इंद्र को यह अहंकार था कि मैं देवताओं का राजा हूं और मेरी पूजा प्रतिवर्ष होनी चाहिए परंतु भगवान ने प्रकृति पूजा का आधार स्थापित करते गोवर्धन पूजा प्रारंभ कराई । गोवर्धन की पूजा होने से इंद्र रुष्ट हो गए और प्रलय काल के बादलों को बुलाकर के मोटी मोटी बूंदें लेकर ब्रज मंडल में बरसात प्रारंभ कर दी परंतु भगवान तो लीला बिहारी है उन्होंने गोवर्धन को ही अपने दाहिने हाथ कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया और सारा ब्रजमंडल उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे आकर के रहने लगा । 7 दिन तक अनवरत इंद्र के द्वारा जल वर्षा की गई परंतु एक बूंद भी पानी कहीं दिखाई नहीं पड़ा जितनी बूंदे गोवर्धन पर गिरती थी सब तुरंत हवा बनकर उड़ जाती थी सातवें दिन इंद्र को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने आकर के बालकृष्ण की प्रार्थना की इस प्रकार भगवान ने आकाश तत्व का शुद्धीकरण किया । भगवान का अवतार जब जब होता है तो भगवान धर्म एवं प्रकृति की पुनर्स्थापना करते हैं । कथा को सुनकर के श्रोता झूमते हुए नजर आए । भगवान कृष्ण के द्वारा गोवर्धन उठाने की झांकी सबके मन को मोह गई । इस अवसर पर कथा के व्यवस्थापक आचार्य अर्जुन तिवारी अशोक मिश्रा शिव कुमार पांडे घनश्याम मिश्रा अनिल विश्वकर्मा भरत राम तिवारी श्रवण कुमार तिवारी स्वतंत्र पांडे अरविंद चौरसिया फकीरचंद मौर्य घनश्याम मौर्य आदि सैकड़ों भक्त उपस्थित रहे

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