कविता संगठित भावनाओं का नाम है जो अंतर्ज्ञान द्वारा प्रकट होती है : इरशाद अंसारी By फहीम सिद्दीकी2023-10-30

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30-10-2023-


बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल के तत्वाधान में मासिक मुशायरा आयोजित

बाराबंकी। कविता स्थिति और समय की व्याख्याकार है और उस समाज और वातावरण को प्रतिबिंबित करती है जिसमें कवि रहता है। न केवल कविता की कला कविता की निर्माता है, बल्कि भावनाएं जो कवि को मजबूर करती हैं कविता लिखने पर। कविता को उपयुक्त रूप से इस प्रकार भी परिभाषित किया गया है "कविता संगठित भावनाओं का नाम है जो अंतर्ज्ञान द्वारा प्रकट होती है"।
   ये विचार "बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल" के मासिक मुशायरे के अध्यक्ष इरशाद अंसारी ने अपने ख़ुत्ब- ए- सदारत में व्यक्त किये।  आइडियल इंटर कॉलेज के विशाल हॉल में आयोजित होने वाले इस मुशायरे के संचालन का दायित्व हास्य और वाकपटुता के सुप्रसिद्ध शायर बेढब बाराबंकवी ने निभाया।मुशायरे का आरम्भ भगवान की वन्दना करते हुए शमशाद रायपुरी और नात पाक का पाठ करते हुए अबू हुरैरा अहमद ने किया, इस के बाद दिए गए मिसरे ("वो रहें गे भला ख़फ़ा कब तक") पर नियमित मुशायरा शुरू हुआ और मुशायरा बहुत सफल रहा मुशायरे में बहुत ही ज़ियादा पसन्द किए जाने वाले अशआर का इंतिख़ाब पेश है मुलाहिज़ा फ़रमाएं :-

देख कर जिस को होश उड़ जाएँ
वो दिखाएँ गे आप अदा कब तक
         बेढब बाराबंकवी
जिस में होती है सिर्फ़ नस्ल कशी
ख़त्म होगा वो मअर्का कब तक
        ज़की तारिक़ बाराबंकवी
या ख़ुदा भेज अब अबाबीलें
ज़ुल्म ढाएगा अबरहा कब तक
            अनवर सैलानी
बुज़दिली का ये सिलसिला कब तक
ज़ंग खाएगा असलहा कब तक
          ज़हीर रामपुरी
पूछो नज़दीक से तो बतलाएँ
ख़त्म होगा ये फ़ासला कब तक
          मुश्ताक बज़्मी
कुछ समझ में मेरे नहीं आता
वो रहेंगे भला ख़फ़ा कब तक
            उबैद अज़्मी
जिस की ग़ैरत ही मर गई उस को
तुम दिखाओ गे आईना कब तक
           सग़ीर क़ासमी
क़स्रे- बातिल पे ऐ मेरे मौला
झंडा लहराए गा हरा कब तक
          अबू हुरैरा अहमद
इक न इक दिन उन्हें मना लूँगा
वो रहें गे भला ख़फ़ा कब तक
            असअद हमज़ा
सुनने वाले चले गए थे सब
चुप न रहता तो बोलता कब तक
              अरशद उमैर 
इक न इक दिन तो मौत आनी है
ज़िन्दगी साथ है तेरा कब तक
              सहर अय्यूबी
मौत हासिल है ज़िन्दगी का जब
मौत से कोई भागता कब तक
              राशिद चौखण्डवी
      उपरोक्त शायरों के अलावा अबू ज़र अंसारी, इज़हार हयात, तालिब नूर और शमशाद रायपुरी आदि ने भी अपनी-अपनी तरही शायरी पेश की और खूब सराहना बटोरी, श्रोताओं में मास्टर  मोहम्मद हलीम, मास्टर मोहम्मद वसीम, मास्टर मोहम्मद क़सीम, , मोहम्मद सुफ़ियान एताक़, मास्टर राशिद अंसारी का नाम भी उल्लेखनीय है।
    "बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल" का आगामी मासिक मुशायरा निम्नलिखित मिसरा तरह पर
 "भूक तकती रही रोटियां देर तक"
दिनाँक 26 नवंबर दिन रविवार को होगी।

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