प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजनांतर्गत मत्स्य पालको हेतु दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन। By उस्मान अली2023-11-24
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24-11-2023-
मसौली बाराबंकी। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजनांतर्गत मत्स्य पालको की दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर ग्राम बदलूपुरवा मजरे लक्षबर बजहा मे सम्पन हुई जिसमे मत्स्य पालको को घरेलू विपणन को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षित किया गया। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम के तत्वाधान मे आयोजित शिविर मे मत्स्य पालको को सम्बोधित करते हुए अयोध्या मंडल के मत्स्य उपनिदेशक राजेंद्र कुमार विष्ट वैज्ञानिकों द्वारा बताए तकनीकियों को अपनाकर मछली पालक अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं मछली पालन के विविध प्रणालिया होती है मछलियों को एक साथ पालने से फायदा होता है । एन सी डी सी के क्षेत्रीय निदेशक संजय कुमार
ने कहा कि कृषि एवं पशुपालन के साथ मछली पालन अपनाकर एकीकृत फसल प्रणाली अपना कर किसान कम लगत मे अच्छी आमदनी कर सकते हैं । उन्होंने बताया कि मछलियों के आहार ग्रहण करने की आदत अलग-अलग होती है इसलिए तालाब में भारतीय कार्प एवं विदेशी कार्प को एक साथ पालना चाहिए उपरोक्त पद्धति से मछली पालन करने में आहार की बचत भी होती है एवं आहार का भी नुकसान नहीं होता है ।
एफ पी ओ सलाहकार मोहम्मद आफाक खान ने मछली पालन करने की तकनीकी जैसे तालाब के लिये स्थान का चुनाव , तालाब का प्रबंधन की जानकारी देते हुए तालाब मे पालने के लिए मछलियों के अनुपात की तीन पद्धतियों के बारे में बताते हुए कहा कि 40 प्रतिशत भाकुर . 30 प्रतिशत रोहू , 30 प्रतिशत नैन, अथवा 20 प्रतिशत भाकुर, 30 प्रतिशत रोहू, 30 प्रतिशत नैन 30 प्रतिशत सिल्वर अथवा 20 प्रतिशत भाकुर, 10 प्रतिशत रोहू, 30 प्रतिशत नैन, 15 प्रतिशत सिल्वर 20 प्रतिशत कामन, 15 प्रतिशत ग्रास कार्प का चुनाव करने एवं मछलियों के अच्छी बढ़वार के लिए संतुलित आहार के बारे में विस्तृत जानकारी दी उन्होंने बताया कि मछली के साथ कुक्कुट पालन एवं मछली के साथ बत्तख पालन की एकीकृत प्रणाली अपना कर कृषक भाई अच्छा लाभ कमा सकते हैं । इस पद्धति में कुक्कुट और बत्तख के मल -मूत्र को मछलिया खा जाती है जिससे मछलियों के आहार में होने वाले खर्च को बचाया जा सकता है |
मत्स्य निरीक्षक रमेश चंद्र ने बताया कि 1.0 हेक्टेयर जल क्षेत्र के लिए लगभग 75 मी.मी. या 150 मि.मी. तक लंबाई की 5 हजार से 6 हजार मत्स्य बीज की आवश्यकता होती है मछलियां साल भर में 1.0 से 1.5 कि.ग्रा. किलोग्राम तक वजन की हो जाती है प्रशिक्षण के दौरान केंद्र के नागेंद्र वैष्णेय ने तालाब की मिट्टी की जांच, पानी का पीएच मान एवं गोबर की खाद एवं उर्वरक अमोनियम सल्फेट, सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश आदि का किस अनुपात में कैसे प्रयोग करना चाहिए किसानों को जानकारी दी।
इस मौक़े नागेंद्र कुमार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य गणेश प्रसाद, सुशील कुमार श्रीवास्तव, राज्य संयोजक शील रतन गुप्ता, पीके वाष्णेय जितेंद्र कुमार पाण्डेय ने 18 सहकारी समितियों के मत्स्य पालको को प्रशिक्षित किया गया ।
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