सोने के भंडार वाली सोन पहाड़ी पर कभी सोने की गुल्लियां निकलती थीं, इसकी गोद में छिपे हैं कई रहस्य By tanveer ahmad2020-02-25
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25-02-2020-
सोनभद्र के पनारी ग्राम पंचायत के जुड़वानी में स्थित सोन पहाड़ी का इतिहास वर्षों पुराना है। यहां कभी सोने की गुल्लियां निकलती थी, इसी कारण यह पहाड़ी सोन पहाड़ी कहीं जाने लगी। हाल ही में इसी स्थान पर सोने का भंडार मिलने की बात सामने आई है। इस पहाड़ी के आसपास बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं। उनकी बातों को मानें तो इस पहाड़ी की गोद में कई रहस्य छिपे हुए हैं। सोन पहाड़ी से सटे जुड़वानी गांव के रहने वाले क्षेत्र पंचायत सदस्य बाल गोविंद व गुरमुरा के रहने वाले राजबली गोंड की मानें तो बुजुर्ग ऐसा बताते थे कि सोन पहाड़ी के पास लगभग 200 वर्षों पूर्व सोने की गुल्ली मिली थी। सोने की गुल्ली मिलने के चर्चा के बाद यहां रहने वाले लोगों ने उसकी खुदाई शुरू की। हालांकि उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा लेकिन लोगों का यह मानना रहा कि जैसे-जैसे खुदाई की जाती वैसे वैसे सोना सरकता जा रहा था। बस तभी से यह पहाड़ी सोन पहाड़ी के नाम से चर्चित हो गई। राजबली बताते है कि भूगर्भ विभाग की टीम 2005 से यहां आ रही है। टीम ने पहाड़ी पर दर्जन भर स्थानों पर होल भी किया है। हालांकि टीम को यहां क्या मिला इसकी जानकारी उन्हें नही है। अखबारों के माध्यम से पता चला कि यहां सोने का भंडार है।सोना खिसकता गया और बन गया कमल का फूल
सोन पहाड़ी पर सोने का भंडार मिलते ही पुरानी कहावतें भी लोगी को याद आने लगी है। कहावत है कि यहा वर्षों पूर्व भी खुदाई हुई लेकिन सोना खिसकता गया और सोन नदी में जाकर कमल का फूल बन गया। जुड़वानी के राजबली गोड़ बताते हैं कि यहां खुदाई तो वर्षों से हो रही है। उनका कहना है कि सोन पहाड़ी पर सोने की खुदाई को लेकर बुजुगों से सुना था। बुजुर्ग सोन पहाड़ी को लेकर बताते थे कि यहां वर्षों पूर्व भी सोने को लेकर खुदाई हुई थी लेकिन सोना नहीं मिला। कहावत है कि लोग बहुत खुदाई किए लेकिन जैसे जैसे खुदाई करते सोना खिसकता जाता। खुदाई से सोना खिसकता चला गया और सोन नदी में जाकर कमल का फूल बन गया। अब इसमें कितनी सच्चाई है वे ही जाने लेकिन सोन पहाड़ी को लेकर क्षेत्र में यही कहानी प्रचलित है।सोन पहाड़ी पर स्थित है सोनईत डीह बाबा का मंदिर
सोनभद्र के पनारी ग्राम पंचायत के जुड़वानी में स्थित सोन पहाड़ी पर रोहित जी बाबा की वर्षों से आदिवासी पूजा करते आ रहे हैं। मन्नतें पूरी होने पर यहां बलि चढ़ाने की भी प्रथा है। सोन पहाड़ी पर स्थित बाबा की आसपास के आदिवासी वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं। आदिवासी सुरेश व बाल गोविंद का कहना है कि उनके पुरखों के समय से यहां पूजा पाठ हो रहा है। बताया कि मन्नतें पूरी होने पर लोग यहां आकर पूजा पाठ करते हैं और जानवरों की बलि भी चढ़ाते हैं। लगभग 500 फीट ऊंची इन पहाड़ियों पर अक्सर चरवाहों का गुजरना होता है। पहाड़ियों पर पियार और तेंदू के पेड़ की संख्या अधिक है। उन्होंने बताया कि लगभग 20 वर्ष पहले ग्राम प्रधान सुखसागर खरवार ने सोन पहाड़ी पर मंदिर भी बनवाया है। जहां अक्सर आदिवासी आकर पूजा पाठ करते हैं। उनकी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है।चारों तरफ जंगलों से घिरी है पहाड़ी
सोन पहाड़ी के चारों तरफ घने जंगल हैं। पूरी पहाड़ी हरे भरे पेड़ों से गिरी हुई है। जंगली रास्तों से चलकर ही आदिवासी इस पहाड़ी पर पहुंचते हैं। सैकड़ों एकड़ में फैली इस पहाड़ी में ज्यादातर पीयार व तेंदू के पौधे पाए जाते हैं। इसके साथ ही जंगली बेर अन्य छोटे छोटे पेड़ों की संख्या भी कम नहीं है। सोन पहाड़ी के आसपास बसे जुड़वानी, गुरमुरा आदि गांव के लोगों को यहां सोने का भंडार होने की जानकारी तो नहीं है लेकिन यह मालूम है कि यहां कभी सोना मिलता था। इसके कारण इस पहाड़ी को सोन पहाड़ी कहते हैं। सोन पहाड़ी पर सोने का भंडार मिलने की उम्मीद के बाद यहां लोगों के आने-जाने का जो क्रम शुरू हुआ इसे देखकर आदिवासी खुद अचंभित हैं। इस इलाके में जहां कभी कोई नजर नहीं आता था पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों लोग और दर्जनों वाहन आ रहे हैं। खनिज सम्पदाओं के बीच है शून्य है आदिवासियों का जीवन
खनिज सम्पदाओं से परिपूर्ण सोन पहाड़ी के पास स्थित जुड़वानी गांव के लोग सुविधाओं से वंचित हैं। यहां आदिवासियों में ज्यादातर गोंड व खरवार बिरादरी के लोग निवास करते है। आजादी के दशकों बाद भी ज्यादातर सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। यहां बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। आदिवासी आज भी ढिबरी की रोशनी में रहने को विवश हैं। सड़क के नाम ज्यादातर पगडंडी ही है। गुरमुरा से जुड़वानी जाने वाली सड़क कुछ दूर तक तो पक्की है लेकिन उसके बाद कच्ची ही है। लगभग 200 की आबादी वाले इस टोले को रोशन करने के लिए सौर ऊर्जा भी नही पहुच पाया है।
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