विश्व जल दिवस: तीन अरब लोगों के पास बार-बार हाथ धोने के लिए पानी नहीं By एजेंसी2020-03-22
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22-03-2020-
दुनिया भर में कोविड-19 बीमारी का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने लोगों को बार-बार हाथ धोने की सलाह दी है, लेकिन क्लाईमेट ट्रेंड द्वारा जल की उपलब्धता को लेकर शोध में दावा किया गया है कि दुनिया में तीन अरब लोगों के पास बार-बार हाथ धोने के लिए पानी की उपलब्धता नहीं है। यह सब कुछ ऐसे मौके पर हो रहा है, जब 22 मार्च को विश्व जल दिवस है। विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी विकसित देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही यह जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करता है।क्लाईमेट ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 17 देश अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें पहले 12 मध्य-पूर्व तथा अफ्रीका के हैं तथा 13वां नंबर भारत का है। कोविड के संक्रमण का मामला चीन, अमेरिका और यूरोप के बाद अब जल की कमी वाले देशों भारत आदि में भी फैलने लगा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एक व्यक्ति को अपनी बुनियादी जरूरतों- पीने, खाना पकाने और स्वच्छता को पूरा करने के लिए प्रत्येक दिन 7.5 से 17 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। लेकिन, यह आवश्यकता कोविड-19 से निपटने में आपातकाल में बदल जाएगी, क्योंकि पानी कई सेवाओं और विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवश्यक है। कोविड ने इस दबाव को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट के अनुसार- भारत, ब्राजील, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका, केन्या आदि देशों की अनौपचारिक बस्तियों में हाथ धोने के लिए और पानी के उपयोग के लिए समुदायों को संघर्ष करना पड़ता है। इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां और मानवीय संगठन विशेष रूप से शरणार्थियों और आंतरिक विस्थापितों को लेकर चिंतित हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, तीन अरब लोगों के पास बुनियादी रूप से हाथ धोने के लिए जल की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। दुनिया भर में 2.2 और 4.2 अरब लोग क्रमशः अपने जल और स्वच्छता सेवाओं को हासिल करने के प्रयास में विफल रहे हैं। 2025 तक चुनौती और बढ़ेगी-
शोध के अनुसार, 2025 तक दुनिया की आधी आबादी वॉटर स्ट्रेस (जल तनाव) वाले क्षेत्रों में रहने लगेगी। जबकि 1980 के बाद से पानी की वैश्विक मांग लगभग एक प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है, 2050 तक पानी के उपयोग के वर्तमान स्तर से यह 20 से 30 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता प्रकट की गई है कि कोयले से बिजली उत्पादन में आज भी बड़े पैमाने पर ताजा पानी की क्षति हो रही है, जबकि सौर एवं पवन ऊर्जा को अपनाने से भारी बचत होती है।
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