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भाजपा को संजीवनी, सपा-कांग्रेस रणनीति बनाने में जुटीं

भाजपा को संजीवनी, सपा-कांग्रेस रणनीति बनाने में जुटीं614

👤10-11-2019-अयोध्या विवाद में फैसला आने के बाद सियासी निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। सियासी जानकार इसे जहां भाजपा के लिए एक बार फिर फायदे का सौदा करार दे रहे हैं, वहीं सपा और कांग्रेस के लिए संघर्ष की राजनीति के दिन अभी खत्म होते नहीं दिख रहे।   कुछ ऐसी ही हालत मुस्लिम मतों के लिए हाथ-पैर मारने की कवायद में जुटी बहुजन समाज पार्टी की भी है। वैसे पूरे अयोध्या प्रकरण को राजनीतिक नफा- नुकसान के नजरिए से देखा जाए तो भाजपा के लिए यह मुद्दा एक बार फिर संजीवनी बन सकता है। इसका फायदा उसे आने वाले दिनों में मिल सकता है। वहीं समाजवादी पार्टी ने भी इस मुद्दे से मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने में सफलता पाई लेकिन कांग्रेस लगातार इससे नुकसान में ही रही।\r\nभाजपा को फिर फायदे की उम्मीद
जानकारों की मानें तो भाजपा के लिए एक बार फिर नफे की जमीन तैयार होती नज़र आ रही है। भाजपा इसी मुद्दे के भरोसे शून्य से शिखर तक पहुंची और केंद्र व उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई। यह बात दीगर है कि वक्त के साथ उसके एजेंडे में राममंदिर मुद्दा मुखर रूप से शामिल नहीं रहा लेकिन संघ व उसके आनुषंगिक संगठन इसे जरूर मुद्दा बनाए रहे और पार्टी इसे पर सधी रणनीति अपनाए रही। अब इस मुद्दे के जरिए एक बार फिर वर्ष 2022 में सत्ता तक पहुंचने की कोशिश करे तो हैरत नहीं।\r\nसपा फैसले के बाद ऊहापोह में
भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी ही ऐसा दल रहा जिसे अयोध्या मुद्दे ने संजीवनी दी। भाजपा के आयोध्या आंदोलन के मुखर विरोध के चलते समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह की पार्टी को चार बार सत्ता पर काबिज होने का मौका मिला। फैसले के बाद अब कयास लगाया जाने लगा है कि सपा को एक बार नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। मौजूदा वक्त में सपा पहले वर्ष 2017 में कांग्रेस और वर्ष 2019 में बसपा से गठबंधन के बाद खुद को अकेले लड़ने के लिए तैयार कर रही थी। फैसले से उसके इस प्रयास को झटका लग सकता है।\r\nअब तक नुकसान में रही कांग्रेस को दिखी नई उम्मीद\r\nसंयोग देखिए। ठीक 30 साल पहले आज ही के दिन 9 नवंबर 1989 को कांग्रेस ने अयोध्या में शिलान्यास कराया था और केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार का यह फैसला यूपी में कांग्रेस की विदाई का सबब बना। पूरे 30 साल से पार्टी देश के सबसे बड़े राज्य में हाशिए पर है और मौजूदा समय में भी चौथे नंबर की पार्टी  है। इस प्रकरण में लगातार घाटे में रही कांग्रेस को फैसले से उम्मीद नज़र आ रही है कि अनुच्छेद - 370 के बाद अब राममंदिर मुद्दा भी भाजपा की झोली से दूर हो जाएगा। भावनाओं के ज्वार में सियासी लाभ उठाने की पहले जैसी कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाएंगी और स्थानीय मुद्दों के साथ रोजगार जैसे मुद्दे प्रभावी होंगे।  
🕔tanveer ahmad

10-11-2019-अयोध्या विवाद में फैसला आने के बाद सियासी निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। सियासी जानकार इसे जहां भाजपा के लिए एक बार फिर फायदे का सौदा करार दे रहे हैं, वहीं सपा और कांग्रेस...

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यूपी विधानसभा कई बार तीखी बहस की गवाह बनी

यूपी विधानसभा कई बार तीखी बहस की गवाह बनी 568

👤10-11-2019-
\r\nसुप्रीम कोर्ट का अयोध्या मसले पर बहुप्रतीक्षित फैसला आखिर आ ही गया। इसके साथ ही पूरे विवाद और संघर्ष का अध्याय समाप्त हुआ। पिछले तीस सालों में इस विवाद से जुड़ी दो बड़ी घटनाएं देश में सियासी बदलाव की वजह बनीं। सामाजिक ताने-बाने पर भी असर डाला। इस विवाद के दो बड़े किरदार कल्याण सिंह व मुलायम सिंह रहे। एक के राज में छह दिसंबर की घटना हुई तो दूसरे के राज में कारसेवकों पर गोलीकांड। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश विधानसभा भी बड़ी चर्चा की गवाह बनी।  अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीकांड के बाद देश भर में माहौल गरमा गया था। सियासी घटनाक्रम तेजी से बदलने लगा। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे। ऐसे में नवंबर 1990 के तीसरे हफ्ते में विधानसभा का सत्र बुलाया गया और उसमें मुलायम ने अपनी सरकार के प्रति विश्वास मत हासिल किया। उसी विश्वास मत प्रस्ताव पर चली बहस में मुलायम ने गोलीकांड पर अपना पक्ष रखा और भाजपा को निशाने पर लिया तो भाजपा नेता कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह यादव सरकार को अत्याचारी बताया।  पेश है रिपोर्ट:-\r\n
स्थान : उत्तर प्रदेश विधानसभा  
तारीख    20 नवंबर 1990 
मौका    सदन में मुलायम सिंह द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा\r\nमुलायम सिंह यादव\r\nअध्यक्ष महोदय, जनता को बताना चाहता हूं कि राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के विवाद का सहारा लेकर किस तरह एक लोकप्रिय सरकार को नीचा दिखाने और देश की करोड़ों जनता के साथ छल करने की कोशिश की गई। ऐसी  स्थिति पैदा की गई कि एक राजनीतिक समस्या का राजनीतिक समाधान करने के बजाय प्रशासनिक समाधान करने की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार पर आ गई। ...अयोध्या का विवाद एक धार्मिक मुद्दा है जिसे भाजपा व  विश्व हिंदू परिषद ने राजनीतिक मसला बना दिया। ...बड़े अफसोस की बात है कि देश की सम्मानित कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने साम्प्रदायिक ताकतों को साथ दिया। विश्व हिन्दू परिषद व भाजपा ने सारी जिम्मेदारी और विश्वास पूर्व प्रधानमंत्री  को सौंप रखे थे। तीनों में से किसी ने उत्तर प्रदेश की सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत नहीं समझी। .... तो मान्यवर, विश्व हिंदू परिषद ने प्रस्ताव पास कर चार महीने का मौका दिया, पूर्व प्रधानमंत्री को। 23-24 जून को प्रस्ताव  पास होता है कि मंदिर बनाओ, मुलायम हटाओ....। मुझे कोई मौका नहीं दिया...... इसके दोषी पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह हैं। मैं उन्हें 1980 से पहचानता था। सदन में इस पर शोरशराबा शुरू हो गया। \r\nकल्याण सिंह \r\nमान्यवर, अयोध्या के अंदर उस बाबरी मस्जिद के अलावा पांच मस्जिदें और हैं। अगर मस्जिद तोड़ने का किसी का इरादा होता तो वह मस्जिद तोड़ने की बात सोचता लेकिन कारसेवकों ने किसी मस्जिद को छुआ तक नहीं। अगर वहां कारसेवकों को जाने दिया होता और उन्हें बीच में रोका गया न होता, तो निश्चित तौर पर 30 तारीख को जो हादसे हुए हैं, वे टाले जा सकते थे लेकिन 30 तारीख को अपनी पराजय के बाद उस दिन मुख्यमंत्री जी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। इसी वजह से संबंधित अधिकारियों को खूब डांटा और आदेश दे दिया कि इन सब कारसेवकों को मौत के घाट उतार दो और लाशें भी मत गिनो। इस तरह जितनी गोलियां चाहीं चलवाईं। (आरोप प्रत्यारोप से व्यवधान)\r\nफिर मान्यवर, इस बीच जो भी हुआ और फिर दो नवंबर को अयोध्या में जो कुछ हुआ और  प्रदेश में नरसंहार हुआ, उस पर मानवता सदियों तक रोएगी जबकि सभी कारसेवक शांत थे। निहत्थे थे। वे जय सिया राम, जय-जय राम के नारे लगा रहे थे। उन पर गोलियां चलाई गईं। (आरोप प्रत्यारोप के कारण घोर व्यवधान)यही कहना चाहता था कि दो नवंबर को अयोध्या में नरसंहार  बड़ी क्रूरता व निर्ममता से हुआ। बेतहाशा गोलियां चलाई गईं। मुलायम सिंह ने सरकारी प्रचार माध्यमों से झूठ बुलवाया। शहीदों की संख्या सैकड़ों में है। आपको मरने वालों से कोई मोह नहीं है। सत्तापक्ष में बैठे लोगों में संवेदना नाम की कोई चीज ही नहीं है। मैं कहता हूं डायर ने भी इतना जघन्य हत्याकांड नहीं करवाया जितना इन्होंने करवाया है। अगर सरकार में हिम्मत है तो 30 अक्तूबर व 2 नवंबर को अयोध्या में जो नरसंहार हुआ है, उसकी जांच उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश से कराई जाए। \r\nतारीख
22 दिसंबर 1993   
मौका , राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा \r\nछह दिसंबर की घटना के बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई। राष्ट्रपति शासन लगा। फिर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए। सपा-बसपा गठबंधन के  नेता के तौर पर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। भाजपा को सबसे बड़ा दल होने के बावजूद विपक्ष में बैठना पड़ा। विधानसभा में कल्याण सिंह नेता विपक्ष थे। राज्यपाल के अभिभाषण पर चली चर्चा में कल्याण व मुलायम सिंह दोनों ने अपनी अपनी बात रखी। \r\nकल्याण सिंह  (नेता प्रतिपक्ष): ....6 दिसंबर को ढांचा टूट गया। क्या गजब हो गया। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। क्या प्रधानमंत्री जिम्मेदार नहीं हैं, जो 4 महीने तक लगातार मामले को उलझाते रहे। मेरे बिना मांगे 185 कंपनी केंद्रीय सुरक्षा बल भेजकर अयोध्या को छावनी बना दिया गया? क्या रामो-वामो के नेता उसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं जिन्होंने उत्तेजक भाषण दिया कि कारसेवा किसी भी कीमत पर नहीं होने दी जाएगी। अगर छह दिसंबर से पहले फैसला आ जाता तो स्थिति कुछ भिन्न होती। जहां तक ढांचे की सुरक्षा का संबंध है तो हमने ढांचे की सुरक्षा का पक्का इंतजाम किया। \r\nएक सदस्य- विवादित ढांचा नहीं मस्जिद कहें 
कल्याण सिंह- यही तो प्रधानमंत्री ने गजब किया था, मस्जिद कहा और दंगे हो गए और यह न्यायपालिका का भी अपमान है क्योंकि न्यायपालिका ने भी विवादित ढांचा कहा है। अगर उन्होंने यह न कहा होता तो देश के अंदर जो स्थिति पैदा हुई है वह नहीं पैदा हुई होती। ....हमने पहले भी कहा था आज भी कहता हूं, स्थानीय प्रशासन का भी कहना था कि लाखों की भीड़ है। गोली चलाएंगे तो उसका रिएक्शन प्रदेश व देश में भी हो सकता है। \r\nमेरे पास स्थानीय प्रशासन के आकलन से असहमत होने का कोई कारण नहीं था। हमने कह दिया कि गोली न चलाइए। लिखित आदेश दिया। .....मेरे ऊपर राजनीतिक कारणों से केस चलाया जा रहा है। हम लोगों से कोई गलती नहीं हुई है। न कभी हमने न्यायालय का अपमान किया है और न कभी माननीय न्यायालय की अवमानना की है। \r\nमुलायम सिंह यादव (नेता सदन) : मान्यवर, 27 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया।  23 नवंबर को राष्ट्रीय एकता परिषद को आश्वस्त किया कि हर हालत में मस्जिद की रक्षा होगी। इसकी आपने कसम खाई थी। किन्तु आपने छह दिसंबर 1992 को मस्जिद गिरवा दिया। हमने तो 30 अक्तूबर 1992 को हमने कह दिया था कि देश में संविधान,  न्यायपालिका व देश की  एकता से बढ़कर कुछ नहीं है। हमारे सामने संविधान का सवाल था। देश की एकता के लिए 16 जानें गईं। इसका मुझे अफसोस है। आपने मस्जिद गिरवा दिया। इससे दुनिया में हमारा सर शर्म से झुक गया। यह लड़ाई हिंदू मुसलमान की नहीं बल्कि वोट के खातिर कट्टर हिंदूवाद की लड़ाई है।  
🕔tanveer ahmad

10-11-2019-
\r\nसुप्रीम कोर्ट का अयोध्या मसले पर बहुप्रतीक्षित फैसला आखिर आ ही गया। इसके साथ ही पूरे विवाद और संघर्ष का अध्याय समाप्त हुआ। पिछले तीस सालों में इस विवाद से जुड़ी दो बड़ी...

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 यूपी कांग्रेस अध्यक्ष लल्लू ने कहा- यह फैसला फासलों को मिटाएगा

यूपी कांग्रेस अध्यक्ष लल्लू ने कहा- यह फैसला फासलों को मिटाएगा312

👤10-11-2019-
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा है कि कांग्रेस सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करती है। यह निर्णय किसी भी पक्ष की जय और पराजय नहीं है। उम्मीद है कि यह फैसला फासलों को मिटायेगा। पूरे प्रदेश की जनता से अपील है कि भारत के संविधान में स्थापित सर्व धर्म समभाव और भाईचारे के उच्च मूल्यों को निभाते हुए अमन चैन बनाए रखें।लल्लू ने पहले मीडिया टीम को दी हिदायतदोपहर 12 बजे। फैसला आ चुका है। प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पार्टी की मीडिया टीम के साथ बैठक कर रहे हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व ने सुबह ही आगाह कर दिया था कि फैसला आने से पहले किसी को बोलना नहीं है। फैसले पर पार्टी का रूख आने के बाद ही बोला जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत। ज्यादा बयानबाजी नहीं करनी है। प्रदेश अध्यक्ष यही हिदायत मीडिया टीम को दे रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष खुद 8 बजे ही पार्टी दफ्तर आ गए थे। बीच में, थोड़ी देर के लिए निकल कर गए थे। वापस दफ्तर में बैठे हैं। उनसे मिलने वाले सौ-सवा सौ लोग भी पार्टी दफ्तर पहुंचे हैं। प्रदेश अध्यक्ष सबसे मिल भी रहे हैं। डेढ़ बजने से पहले प्रदेश अध्यक्ष का आधिकारिक बयान भी आ गया है। 
🕔tanveer ahmad

10-11-2019-
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा है कि कांग्रेस सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करती है। यह निर्णय किसी भी पक्ष की जय और पराजय नहीं है। उम्मीद है कि...

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अयोध्या केस फैसलाः मायावती बोलीं- सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हो

अयोध्या केस फैसलाः मायावती बोलीं- सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हो612

👤10-11-2019-बसपा सुप्रीमो मायावती ने अयोध्या मामले पर फैसला आने से पहले और बाद में ट्वीट कर लोगों से धैर्य का परिचय देने को कहा है। फैसला आने के बाद 1.11 बजे उन्होंने ट्वीट कर कहा कि डा. भीमराव आंबेडकर के धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के संबंध में आम सहमति से दिए गए ऐतिहासिक फैसले का सभी को सम्मान करते हुए अब सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही आगे का काम होना चाहिए। उन्होंने फैसला आने से पहले 9.39 बजे ट्वीट कर कहा कि अयोध्या प्रकरण अर्थात रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद के संबंध में फैसले पर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय सुनाया जाने वाला है। सभी लोगों से पुनः अपील है कि वे कोर्ट का फैसला स्वीकार करें व इसका सम्मान करें और शांति बनाए रखें।बसपा कार्यालय के बाहर सन्नाटा और भीतर रही हलचलसुबह समय 11.45 मिनट बजे हैं। माल एवेन्यू स्थित बसपा का प्रदेश कार्यालय और मायावती के आवास के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ है। आपाधापी वाली सड़कें पूरी तरह से सूनी नज़र आ रही हैं। न कोई दुकान खुली और न ही सड़कों पर गाड़ियों का शोर सुनाई दिया लेकिन अंदर का नजारा इसके ठीक विपरीत था। 
🕔tanveer ahmad

10-11-2019-बसपा सुप्रीमो मायावती ने अयोध्या मामले पर फैसला आने से पहले और बाद में ट्वीट कर लोगों से धैर्य का परिचय देने को कहा है। फैसला आने के बाद 1.11 बजे उन्होंने ट्वीट कर कहा कि डा....

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पार्टी लाइन के कारण फैसले पर नहीं कर पा रहे खुशी का इजहार

पार्टी लाइन के कारण फैसले पर नहीं कर पा रहे खुशी का इजहार393

👤10-11-2019-अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शनिवार को दिन भर लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में सन्नाटा पसरा रहा। सामान्य दिनों की अपेक्षा, थोड़ी-भीड़ जरूर थी लेकिन अपने उत्साह को दबाए हुए नजर आई। अयोध्या में राममंदिर निर्माण के पक्ष में आए कोर्ट के फैसले के बावजूद पार्टी में पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपनी खुशी खुलकर जाहिर नहीं कर पा रहे थे। पदाधिकारी एक-दूसरे को बधाई भी धीमी आवाज में दे रहे थे। हमेशा सुर्खियों में रहने की चाहत रखने वाले प्रवक्ता भी शनिवार को बोलने से कतरा रहे थे।\r\nहालांकि, केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने आधिकारिक रूप से भाजपा कार्यकर्ताओं को फैसले पर कोई खुशी जैसी  प्रतिक्रिया व्यक्त करने पर रोक नहीं लगाई थी। भाजपा के प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल लगातार दिल्ली के संपर्क में थे। वह चाहते थे कि दिल्ली से अनुमति के बाद ही यहां भी उसी लाइन पर भाजपा प्रवक्ता बोलें। दोपहर बाद सुनील बंसल के यहां से निर्देश लेकर आए पार्टी के प्रदेश महामंत्री ने दोपहर में पार्टी के प्रवक्ताओं के साथ बैठक कर कहा कि मीडिया के बीच केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के ही बयानों के आधार पर बोलें, इसके इतर कुछ न बोलें। पार्टी नेतृत्व ने फैसले पर उत्साह में आतिशबाजी करने और एक-दूसरे को मिठाइयां खिलाने और नारेबाजी करने पर अघोषित रूप से रोक लगा दी है। पार्टी नेतृत्व ने यह कहा कि जब ऊपर से कोई निर्देश आएगा, तभी कुछ आगे किया जाएगा।  इसलिए पदाधिकारी सार्वजनिक रूप से नहीं एक-दूसरे को कमरों में जाकर बधाई दे रहे थे। भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल के यहां बधाई देने वाले पदाधिकारियों का तांता लगा हुआ था। पार्टी पदाधिकारी फैसले की बारीकियों पर एक-दूसरे से बात करते दिखे।
🕔tanveer ahmad

10-11-2019-अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शनिवार को दिन भर लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में सन्नाटा पसरा रहा। सामान्य दिनों की अपेक्षा, थोड़ी-भीड़ जरूर...

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अयोध्या फैसला: मस्जिद के नीचे था एक मंदिर, ASI से पहले यूपी पुरातत्व विभाग ने दिए थे सुबूत

अयोध्या फैसला: मस्जिद के नीचे था एक मंदिर, ASI से पहले यूपी पुरातत्व विभाग ने दिए थे सुबूत288

👤10-11-2019-अयोध्या में विवादित स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की खुदाई से पहले उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग ने 1990 से 1992 के बीच अपने सर्वेक्षण में यह तथ्य खोज निकाले थे कि मस्जिद विवादित स्थल पर मंदिर के अवशेष पर बनाई गई थी। यही तथ्य उच्चतम न्यायालय में अहम आधार साबित हुए। उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक डॉ. राकेश तिवारी की मानें तो अयोध्या में विवादित स्थल पर वर्ष 1528 में मीर बाकी द्वारा बनाई गई बाबरी मस्जिद के निर्माण में टूटे हुए मंदिर के अवशेष लगाए गए थे। तिवारी ने राज्य का पुरातत्व निदेशक रहते हुए 1990 में उच्च न्यायालय के आदेश पर विवादित ढांचे के भीतर और बाहर के हिस्सों का दस्तावेज तैयार किया था। इस दस्तावेज में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों की मौजूदगी में वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करवाकर वहां मिले चिन्हों, अवशेषों की एक सूची बनाई थी। इसमें करीब 100 रंगीन और श्वेत-श्याम फोटोग्राफ शामिल थे। तिवारी 1989 से 2013 तक उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग में थे और वहां के निदेशक भी रहे। वर्ष 2013 में इस पद से रिटायर होने के बाद वह 2014 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक भी बने और इस पद पर उन्होंने 2017 तक कार्य किया। डॉ. तिवारी ने \'हिन्दुस्तान\' से खास बातचीत में बताया कि विवादित ढांचे के भीतर पत्थर के करीब 14 खम्भे थे। इन खम्भों पर योगासन की मुद्रा में खंडित मूर्ति, कलश व मंदिर के अन्य अवशेष लगे हुए थे। यह पूरी सामग्री उन्होंने तत्कालीन प्रदेश सरकार और उच्च न्यायालय को सौंपी थी। इसके बाद 1990 से 1992 के दौरान (विवादित ढांचे के विध्वसं से पूर्व) डॉ. राकेश तिवारी ने तत्कालीन प्रदेश सरकार के निर्देश पर विवादित स्थल के आसपास करवाए जा रहे समतलीकरण के कार्यों को दस्तावेज़ के रूप में बनाया था।\r\nपुरातत्व विभाग की टीम को प्रदेश सरकार ने वहां जाकर दस्तावेजीकरण के आदेश दिए थे। डॉ. तिवारी बताते हैं कि दस्तावेज तैयार करने के दरम्यान वहां विवादित स्थल के आसपास समतलीकरण के दौरान की गई खुदाई में शिव की त्रिशूल वाली मूर्ति मिली, नागा शैली के मंदिर के अवशेष मिले। इनमें ‘आमलक’ मुख्य था जो मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है और आंवले के आकार का होता है। 6 दिसम्बर 1992 को जब विवादित ढांचा ढहा दिया गया तो कारसेवक उसका मलबा उठाकर रामकथा कुंज ले गए थे।\r\nयूपी पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. राकेश तिवारी ने बताया, \"यूपी पुरातत्व विभाग ने 1990 से 1992 के बीच यह तथ्य खोज निकाले थे कि मस्जिद विवादित स्थल पर मंदिर के अवशेष पर बनाई गई थी। हमने हिंदू-मुस्लिम पक्षकारों की मौजूदगी में वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करवाकर अवशेषों की एक सूची बनाई थी।\"
🕔 एजेंसी

10-11-2019-अयोध्या में विवादित स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की खुदाई से पहले उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग ने 1990 से 1992 के बीच अपने सर्वेक्षण में यह तथ्य खोज निकाले...

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 देवाताओं के वकील 92 वर्षीय के. पराशरण ने जीती सबसे बड़ी लड़ाई

देवाताओं के वकील 92 वर्षीय के. पराशरण ने जीती सबसे बड़ी लड़ाई8

👤10-11-2019-उम्र को धता बताते हुए अयोध्या मामले में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पराशरण ने फैसले के बाद राहत की सांस ली। उन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं। पूरी ऊर्जा से अयोध्या मामले में अकाट्य दलीलें रखने वाले पराशरण को भारतीय वकालत का भीष्म पितामह यूं ही नहीं कहा जाता। उच्चतम न्यायालय ने अगस्त में जब अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला किया तो विरोधी पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए उनके लिए यह मुश्किल होगा लेकिन 92 बरस के पराशरण ने 40 दिन तक घंटों चली सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश की ।\r\nबैठकर जिरह करने से कर दिया मना
न्यायालय में पराशरण को बैठकर दलील पेश करने की सुविधा भी दी गई लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे। रामलला विराजमान से पहले सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा के वकील रहे पराशरण को भारतीय इतिहास, वेद पुराण और धर्म के साथ ही संविधान का व्यापक ज्ञान है । उन्होंने स्कन्ध पुराण के श्लोकों का जिक्र करके राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की। पराशरण ने सबरीमाला मंदिर विवाद के दौरान एक आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश नहीं देने की परंपरा की वकालत की थी। राम सेतु मामले में दोनों ही पक्षों ने उन्हें अपनी ओर करने के लिए सारे तरीके आजमाए लेकिन धर्म को लेकर संजीदा रहे पराशरण सरकार के खिलाफ गए।\r\nअटार्नी जनरल रह चुके हैं के पराशरण
नौ अक्टूबर 1927 को जन्मे पराशरण पूर्व राज्यसभा सांसद और 1983 से 1989 के बीच भारत के अटार्नी जनरल रहे। पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाजे जा चुके पराशरण को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमिटी में शामिल किया था। इतिहास में जब भी अयोध्या मसले पर बरसों तक चली कानूनी लड़ाई का जिक्र होगा तो पराशरण का नाम सबसे ऊपर लिया जाएगा।
🕔 एजेंसी

10-11-2019-उम्र को धता बताते हुए अयोध्या मामले में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पराशरण ने फैसले के बाद राहत की सांस ली। उन्होंने हाल ही में कहा था कि...

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अयोध्या निर्णय: संयम बरतने की मिसाल बनी 'मर्यादा पुरुषोत्तम राम' की नगरी

अयोध्या निर्णय: संयम बरतने की मिसाल बनी 'मर्यादा पुरुषोत्तम राम' की नगरी871

👤10-11-2019-देश की शीर्ष अदालत ने शनिवार सुबह अयोध्या पर जो फैसला सुनाया उसका इंतजार तो राम की नगरी के लोगों कोजाने कब से था। बरसों बाद मनचाही मुराद पूरी होने पर उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहना भी लाजिमी था। उन्होंने अपनी खुशी जताई भी लेकिन मर्यादा में रहकर अपनी भावनाएं व्यक्त करने की मिसाल भी पेश की। ये वही अयोध्या है जहां विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना ने पूरे देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ दिया था। एक दिन पहले जैसे ही साफ हुआ कि शनिवार सुबह फैसला आ जाएगा, रामनगरी में कुछ खामोशी छाई दिखी, सुरक्षा बलों की गश्त भी बढ़ गई थी। मगर, गंगा-जमुनी तहजीब में जीती अयोध्या सुबह अपने ढर्रे पर ही चलती दिखी। मंदिरों और मठों में घंटे-घड़ियाल बज रहे थे और लोग दर्शन-पूजन में व्यस्त रहे। दुकानें भी आम दिनों की तरह ही खुली रहीं। बाहर से आएकुछ श्रद्धालु जरूर कसमकश में दिखे और अपने घरों को लौटते दिखे।\r\nफैसले के समय ओढ़ी खामोशी
ऐन फैसला आने के समय अयोध्या थोड़ी खामोशी ओढ़े नजर आई। सभी की नजरें कोर्ट पर टिकी थीं। लेकिन 11 बजते-बजते फैसले को पूरी तरह सुनने समझने के बाद लोगों ने घरों से निकलना शुरू किया। बाहर निकलने पर किसी ने न तो अति उत्साह दिखाया और न ही गुस्से का इजहार किया। नुक्कड़-चौराहों पर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। इक्का-दुक्का स्थानों पर अति उत्साही युवा रामलला के जयकारे लगाते नजर आए। लेकिन कुल मिलाकर ऐसा कुछ भी करने से परहेज करते नजर आए तो अमन-चैन को बिगाड़ने वाला हो।\r\nफैसले के बाद सरयू तट पर उमड़ी भीड़
फैसले के करीब घंटे भर बाद सरयू नदी के तट पर श्रद्धालु जुटने लगे। शाम को लोगों ने यहां अपने खुशी जताने के लिएजगह-जगह भंडारे का आयोजन किया। तट पर उपस्थित तीर्थ पुरोहित जगदंबा प्रसाद पांडेय ने बताया कि एक दिन पहले रात को पुलिस ने यहां स्थानीय लोगों को छोड़कर किसी के आने पर रोक लगा दी थी।\r\nऔर सबने अपने घरों पर दीये जलाए
फैसले के बाद सरयू तट पर पहली आरती में बड़ी संख्या में पहुंचकर लोगों ने मंदिर बनाने के फैसले पर अपनी खुशी का इजहार किया। साथ ही अपने-अपने घरों पर दीये भी जलाए। घाट से लेकर हनुमान गढ़ी तक की हर दुकान और गली दीये की रोशनी से यूं नहा उठी, मानों अयोध्या फिर दीवाली मना रही हो। फैसले का अयोध्या में हिन्दू व मुस्लिम पक्षकारों ने खुले दिल से स्वीकार किया। विराजमान रामलला के अभिन्न मित्र त्रिलोकीनाथ पांडेय ने कहा कि यह बड़ी खुशी का दिन है।
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10-11-2019-देश की शीर्ष अदालत ने शनिवार सुबह अयोध्या पर जो फैसला सुनाया उसका इंतजार तो राम की नगरी के लोगों कोजाने कब से था। बरसों बाद मनचाही मुराद पूरी होने पर उनकी खुशी का कोई ठिकाना...

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ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या के युवाओं की आंखें क्यों चमक उठीं

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👤10-11-2019-सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से अयोध्या वासियों की आंखें चमक उठी हैं और उन्हें विकास का सपना दिखने लगा है। अधिकतर लोगों और ख़ासकर हनुमान गढ़ी के आसपास के दुकानदार कहते हैं कि अब मंदिर बनने के साथ ही यहां विकास भी बढ़ेगा। पर्यटन बढ़ जाएगा जिससे रोज़गार भी बढ़ेगा। यही 20 साल से दुकान कर रही नेहा श्रीवास्तव कहती है कि अयोध्या ने हमेशा संघर्ष ही देखा है। अब एक आधार बना है जो अयोध्या के विकास के साथ ही यहां के लोगों की जिंदगी भी बदलेगा। सब मिलकर लिखेंगे नई कहानी: फ़ैसले के पहले अयोध्या में मिले फैय्याज ने कहा कि हम लोगों के बीच कोई बैर नहीं है। हर किसी का सम्मान करना है। फ़ैसले के बाद नया घाट के पास फूल बेचने वाले राम कुमार कहते है -फ़ैसले का स्वागत है और इसे लेकर लड़ने की ज़रूरत नहीं है। अब सब लोग मिल कर नई कहानी लिखेंगे। अब दौर भी बदल चुका है । लोग अब सिर्फ़ विकास चाहते है। रज़ाई भरने वाले ज़हीर का कहना है कि फ़ैसले का सम्मान है। बस अब जो भी हो उसमें विकास ज़रूर जुड़ा रहे।होटल उद्योग बढ़े: बीटेक कर रहे गौरव सिंह कहते है कि ऐतिहासिक फ़ैसला आया है। अब उम्मीद है कि होटल उद्योग बढ़ेगा। छावनी बन गई हनुमान गढ़ी: राम नगरी में शनिवार सुबह छावनी बनी हनुमान गढ़ी में हर किसी को बेरोकटोक प्रवेश मिलता रहा पर फ़ैसला आने के दो घंटे पहले हनुमानगढ़ी पर सख़्ती बढ़ गयी।  रामजन्म भूमि मार्ग पर भी चौकसी कड़ी कर दी गई । 
सर, फ़ैसला आना शुरू हो गया: अधिकारी आपस में चर्चा कर रहे थे इसी बीच सीओ ने कहा कि सर फ़ैसला आना शुरू हो गया है बस तुरंत ही अफ़सरों ने वायरलेस पर अलग-अलग टुकड़ियों को मैसेज करना शुरू कर दिया कि सब अलर्ट रहें। हेलीकॉप्टर से भी निगरानी 
दोपहर दो बजे हेलीकॉप्टर से भी अयोध्या में भी सुरक्षा की निगरानी की गई। इसके अलावा थोड़ी थोड़ी देर पर आरएएफ़ और पुलिस पीएसी के जवान मार्च करते रहे। महिला पुलिस फ़ोर्स का भी काफ़लिा अलग से अयोध्या परिसर के आसपास निकलता रहा।  
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भाजपा-सपा को संजीवनी, कांग्रेस को नुकसान के आसार

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👤10-11-2019-अयोध्या विवाद में फैसला आने के बाद सियासी निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। सियासी जानकार इसे जहां भाजपा के लिए एक बार फिर फायदे का सौदा करार दे रहे हैं, वहीं सपा और कांग्रेस के लिए संघर्ष की राजनीति के दिन अभी खत्म होते नहीं दिख रहे।   कुछ ऐसी ही हालत मुस्लिम मतों के लिए हाथ-पैर मारने की कवायद में जुटी बहुजन समाज पार्टी की भी है। वैसे पूरे अयोध्या प्रकरण को राजनीतिक नफा- नुकसान के नजरिए से देखा जाए तो भाजपा के लिए यह मुद्दा एक बार फिर संजीवनी बन सकता है।  इसका फायदा उसे आने वाले दिनों में मिल सकता है। वहीं समाजवादी पार्टी ने भी इस मुद्दे से मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने में सफलता पाई लेकिन कांग्रेस लगातार इससे नुकसान में ही रही। सपा फैसले के बाद ऊहापोह में
भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी ही ऐसा दल रहा जिसे अयोध्या मुद्दे ने संजीवनी दी। भाजपा के आयोध्या आंदोलन के मुखर विरोध के चलते समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह की पार्टी को चार बार सत्ता पर काबिज होने का मौका मिला। फैसले के बाद अब कयास लगाया जाने लगा है कि सपा को एक बार नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। मौजूदा वक्त में सपा पहले वर्ष 2017 में कांग्रेस और वर्ष 2019 में बसपा से गठबंधन के बाद खुद को अकेले लड़ने के लिए तैयार कर रही थी। फैसले से उसके इस प्रयास को झटका लग सकता है।
 
भाजपा को फिर फायदे की उम्मीद
जानकारों की मानें तो भाजपा के लिए एक बार फिर नफे की जमीन तैयार होती नज़र आ रही है। भाजपा इसी मुद्दे के भरोसे शून्य से शिखर तक पहुंची और केंद्र व उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई। यह बात दीगर है कि वक्त के साथ उसके एजेंडे में राममंदिर मुद्दा मुखर रूप से शामिल नहीं रहा लेकिन संघ व उसके आनुषंगिक संगठन इसे जरूर मुद्दा बनाए रहे और पार्टी इसे पर सधी रणनीति अपनाए रही। अब इस मुद्दे के जरिए एक बार फिर वर्ष 2022 में सत्ता तक पहुंचने की कोशिश करे तो हैरत नहीं।
 
अब तक नुकसान में रही कांग्रेस को दिखी नई उम्मीद
संयोग देखिए। ठीक 30 साल पहले आज ही के दिन 9 नवंबर 1989 को कांग्रेस ने अयोध्या में शिलान्यास कराया था और केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार का यह फैसला यूपी में कांग्रेस की विदाई का सबब बना। पूरे 30 साल से पार्टी देश के सबसे बड़े राज्य में हाशिए पर है और मौजूदा समय में भी चौथे नंबर की पार्टी है। इस प्रकरण में लगातार घाटे में रही कांग्रेस को फैसले से उम्मीद नज़र आ रही है कि अनुच्छेद - 370 के बाद अब राममंदिर मुद्दा भी भाजपा की झोली से दूर हो जाएगा। भावनाओं के ज्वार में सियासी लाभ उठाने की पहले जैसी कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाएंगी और स्थानीय मुद्दों के साथ रोजगार जैसे मुद्दे प्रभावी होंगे।
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